Sunday, December 21, 2014

छोटू : a very short story


सड़क किनारे चाय की टापरी हो, ढाबा या छोटा-मोटा रेस्टोरेंट, किसी वेटर की मजाल थी की मुन्नू मियां की नाक के नीचे से एक नया पैसा भी टिप के तौर पे लेलें? !! और मुन्नू भी इस बात की बड़ी शान बघारते थे " अबे काय की टिप? कैसी टिप? फ्री में थोड़ी खिला पिला रहे हमें ये? 27 साल हो गए बेटे, हिम्मत नहीं हुई आजतक किसी वेटर की, सौंफ खिलाते हुए भी TIP पूछने की हमसे, हाँ! " ऑटो में बैठे मुन्नू ये बता ही रहे थे हमें, की सिग्नल पर ऑटो रुका. एक छोटा बच्चा फाटे कपड़ों में आया और बोला" पानी पिला दो,...साहब, खूब अच्छी बहु आये तुम्हारी". मुन्नू ने पहले तो "आगे चलो बे, हमारी सेटिंग हेगी, तुम क्या बनवाओगे...हेहेहे" कहकर झटक दिया.
जब वो बच्चा नहीं माना तो जेब से एक रुपया निकालकर दिया और तुरंत फोन में कुछ टाइप करने लगा. अपने दोस्त को ऐसे सीरियस होकर टाइप करते हुए हमने पहली बार देखा था. घर पर भी सब ठीक था मुन्नू के, ना ही उनकी अपनी सेटिंग से कोई विवाद था .... फिर क्या? झाँका तो दो पंक्तियाँ दिखाई दी, जिसके बाद मुन्नू मियाँ मेरठी ने हमें "private हेगा " कहकर झटक दिया ....वो पंक्तिया थी ...
कपड़े "उसके" फटे थे पर 'नंगा' मै महसूस कर रहा हूँ...
वो "छोटू" एक रुपये में हजारो की मुस्कान दे गया
मुन्नू भाई का ये शायर रूप देखकर मैं अवाक था.

napunsak

तुम व्यवस्था पे काबिज रहने वाले, हिंसक हो या नपुंसक हो?
रमज़ान में शैतान को रिहा कराने वाले, हिंसक हो या नपुंसक हो?
बेटियों पर आंच को लड़कों की गलती कहने वाले,
ऐ मुलायम ....
शर्म आज फिर लज्जित है, लेकिन तुम फिर भी नपुंसक हो ..

गाँव के हालात कैसे हैं?


क्या बताऊँ गाँव के हालात कैसे हैं
बर्फ की सिल्ली पे रखी लाश जैसे हैं
पांव धरती पे नहीं आज मुखिया के
क्यूंकि जेब में सरकारी पैसे हैं
रोज़ तिल-तिल मर रहे हैं , उन्हें है मालूम
ज़ख्म देकर पूछते हैं - हाल कैसे हैं?

मुन्नू मियाँ और ड्राइविंग लाइसेंस


अमां यार, सुरेस भाई का अभी 4 मिनट पहले ही तो आया था फोन, कह रहे थे की rto के बाहर मिल जइयो, पता नि कहाँ रह गए, टूंडे के यहाँ समोसे खाने न बैठ गए हों.
मुन्नू अपने लाइसेंस के चक्कर में पिछले 15 मिनट से RTO दफ्तर के बाहर खड़ा था, जहाँ वो मन ही मन बिना रुके सुरेस भाई ( RTO दलाल, जो की उनका पुराना पडोसी था) को गालियाँ दे रहा था, वहीँ वो 10 रूपये की मूंगफली चबाकर, दफ्तर के बाहर उनके छिलकों से स्वच्छ भारत कर रहा था. दफ्तर के बाहर और अन्दर चारों और फ़ाइल सँभालते दलालों का इस तरह खुला राज था मानों प्रेस या पुलिस शहर में हो ही नहीं, लम्बी छुट्टी पे हो. तभी सुरेस आया...
मुन्नू : फोन घर छूट गया होगा तुम्हारा और घडी से चलने की आदत तो है ही नहीं, जिल्ले सुभानी आप इतनी जल्दी आ गये, बताओ 56 भोग लगवाऊं आपके लिए?
सुरेस : बकवास मत करे, कागज़ लाया है?
मुन्नू : कागज़ गए यमुनापार, पहले ये बताओ मैं पागल हूँ जो आधे घंटे से इंतज़ार कर रहा हूँ ?
सुरेस : अबे यार, चल अभी 30 मिनट का काम है
सुरेस ने बात निपटाते हुए, मुन्नू को पहले फॉर्म भरवाया, साईन करवाए, फोटो खिंचवाकर फिर कागजात जमा कराये.और इसी बीच सरकारी कर्मचारियों से बातचीत ऐसे हो रही थी जैसे वो रिश्तेदार हों और रोज़ राजमा/हलवे की कटोरियाँ EXCHANGE होती हों. जब मुन्नू ने कहा की टेस्ट वगैरह भी होगा क्या तो सुरेस भाई ने ये कहकर चुटकी लेली " अबे ये कोई उम्र है पेपर लिखने की, स्कूल कॉलेज में कम लिखे क्या ? तुम बताओ इत्ती जल्दी हो जायेगा कहीं काम तुम्हारा? हेहेहेह्हे  "
मुन्नू का काम नई IRCTC वेबसाइट में रिजर्वेशन की तरह मिनटों में हो गया था, वो भी मात्र 300 रूपये में. मुन्नू इस दिलासे से खुश था, की चलो एक महीने में लर्निंग तो आ ही जायेगा.
अगली सुबह मुन्नू ने आँख मसलते हुए पेपर उठाया और खबर पढ़ी :
-यादव सिंह के पास मिले 1000 करोड़
मुन्नू : अबे यार, लोगों को भी चैन नहीं है , पता नहीं क्या मिलता है चोरी करके, हुँह
-RTO ऑफिस में पुलिस की रेड, दलाल भागे, पकडे गए दलालों से पूछताछ, 500 की बजाये 1200 लाइसेंस इशू होते थे.
मुन्नू मियाँ मेरठी का इस खबर के लिए कोई कमेंट नहीं था. वो सुरेस भाई की फोटो अखबार में इस तरह(पुलिस के साथ ) देखकर स्तब्ध था.

कवि

80 के दशक की बात है, वो रोज़ सवेरे 5 बजे से अखबार का इंतज़ार करती थी केवल उसकी कवितायेँ पढने के लिए. वो उसे अपने कॉलेज में चाव से सुनाती थी. उसने सारी क्षणिकाएं, कविता अपनी डायरी में चिपका के संजो राखी थी. क्यूंकि उसने कवि को कभी देखा नहीं था इसलिए उसे लगता था की वो कोई सफ़ेद बाल वाला बूढा है, जिसका चार अक्षर का नाम है. 3 साल तक अखबार में कवि के पूरे नाम/फोटो का इंतज़ार करने के बाद, उसकी शादी हो गई.
शादी के दो महीने बाद, पिछले हफ़्तों के अखबारों में से उसकी कविता देखने की फिर से इच्छा हुई. उसने ढेर में सारे अखबार देखे, और आखिरकार उसी पेज पर, उसी किनारे पे, नए शीर्षक के साथ, एक नई कविता थी, जिसे वो अखबार के कारण धुल से छुई हुई उँगलियों से सहला रही थी. आखिर दो महीने बाद वो उसका लिखा हुआ पढ़ रही थी. उसने उस कविता को तीन बार पढ़ा इससे पहले वो क्रेडिट्स पढ़ती
अंत में, उसका नाम उस कवि के पूरे नाम से पहले लिखा था.......... जिसे देख वो भावुक हो गई.
कवि ही उसका पति था. ‪#‎Parents‬ ‪#‎TrueStory‬ 

पंछी क्यूँ परदेसी हो गए, अब अपने ही गाँव से

नदी किनारे पीपल बाबा पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यूँ परदेसी हो गए, अब अपने ही गाँव से

चहल पहल रहती थी कल तक, आज वहाँ सन्नाटा है
मेरी हरी-भरी शाखों को किस जालिम ने काटा है
रिश्ता छूट गया नदिया का, जैसे टूटी नाव से
नदी किनारे पीपल बाबा पूछे अपनी छाँव से,
पंछी क्यूँ परदेसी हो गए, अब अपने ही गाँव से

पेट की खातिर शहरों की ओर उड़ानें होती हैं
थकी हुई पगडण्डी अपनी वीरानी पर रोती है
    छप्पर और खपरेलों में दिखते हैं गहरे घाव से,
      नदी किनारे, पीपल बाबा पूछे अपनी छाँव से
        पंछी क्यूँ परदेसी हो गए, अब अपने ही गाँव से

        पहले तीज त्योहारों पर हर बार सवारी जाती थी
        उसके बाद तो भूली भटकी चिट्ठी ही आ पाती थी
        अब मेहमान नहीं आते काले कौवे की कांव से
        नदी किनारे पीपल बाबा, पूंछे अपनी छाँव से
        पंछी क्यूँ परदेसी हो गए खुद अपने ही गाँव से

        शेर

        कोहरा इतना घना की तुम्हारी झलक भी नही दिखती
        ठण्ड इतनी की पल-पल समेटी याद भी है ठिठुरती
        लिहाफ का मज़ा लेने वाले कितना इठलाते होंगे
        हमारे अलाव पे तुम्हारी एक नज़र तक नहीं पड़ती ।
        “ऐ Akhilesh Yadav तुझसे पहले जो यहाँ पर तख्ता-नशीं था,
        उसे भी अपने खुदा होने पर बड़ा यकीन था

        तुझे यूँ  देख में कमला ना होता,
        थोडा और पहले आती तो इश्क गहरा ही होता 

        Sunday, January 12, 2014

        A very short story: देवरिया गाँव

        सोनू पिंकी से 2 महीने से बहुत ज्यादा मिल रहा था. दोनों की नजदीकियां काफी थीं प्यार के परवान चढने को. एक महीने से दोनों के माँ बाप दुखी थे. एक हफ्ते पहले ही सोनू ने पिंकी के लिए जहर खाने की धमकी दी थी.
        खाप ने अगले ही दिन दोनों को मार डाला.

        पिंकी, सोनू की बुआ की बेटी थी,पिछले 18 साल से.

        Saturday, January 11, 2014

        A very short story: Newspaper

        वो हाफ स्वेटर में 500 मीटर से भागता हुआ आता है. ज़मीन बर्फ और उनपे पड़े कंकड़ कांटे उसके नंगे पैर को कांटे की तरह लग रहे हैं. 3 बार धक्का खाने के बाद आखिरकार 40 लोगों की भीड़ में वो 3 मोटी लकड़ियाँ छीनकर वापस भागता है.....
        हांफता हुआ 9 साल का असलम अपने अब्बू के पास पहुँचता है...
        0 डिग्री की ठण्ड में अब्बू के हाथ में आज के अखबार का टुकड़ा है जिसे वो पढने की कोशिश कर रहा है.


        अब्बू ,उसे पेपर का टुकड़ा देते हुए रुआंसा हो जाते हैं....... और कहते हैं ........, " ले,.... इससे जला ले लकड़ी"...

        असलम सनी लियॉन की नाचती हुई फोटो देखता है,... और जला कर लकड़ी जलाने लगता है ...

        Newspaper के टुकड़े पे लिखा था....
        मुलायम द्वारा आयोजित सैफई महोत्सव के नए वर्ष प्रोग्राम में सनी ने लगाये ठुमके..
        मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों के हालात बदतर. गद्दे सीलन से भीगे.

        A very short story: जिम्मी

        जिम्मी के पैर पे एक कार चढ़ गयी थी. उसके पैर की हड्डी टूट गयी और वो घायल पड़ा करहा रहा था . राह चलते एक फ़कीर ने उसके पैर पे पट्टी बाँधी और अपने बचे हुए पैसे से उसे डॉक्टर के पास ले गया.
        जिम्मी के 6 दिन साथ रहने के बाद उस फ़कीर को रात में कोई गाडी टक्कर मार जाती है. कोई मदद नहीं मिलती है और उसका घायल शरीर, खून में जस का तस पड़ा है.

        जिमी, एक कुत्ता, फ़कीर के मरणोपरांत उसके शरीर के साथ लिपट के रो रहा है