कोहरा इतना घना की तुम्हारी झलक भी नही दिखती
ठण्ड इतनी की पल-पल समेटी याद भी है ठिठुरती
लिहाफ का मज़ा लेने वाले कितना इठलाते होंगे
हमारे अलाव पे तुम्हारी एक नज़र तक नहीं पड़ती ।
“ऐ Akhilesh Yadav तुझसे पहले जो यहाँ पर तख्ता-नशीं था,
उसे भी अपने खुदा होने पर बड़ा यकीन था
तुझे यूँ देख में कमला ना होता,
थोडा और पहले आती तो इश्क गहरा ही होता
ठण्ड इतनी की पल-पल समेटी याद भी है ठिठुरती
लिहाफ का मज़ा लेने वाले कितना इठलाते होंगे
हमारे अलाव पे तुम्हारी एक नज़र तक नहीं पड़ती ।
“ऐ Akhilesh Yadav तुझसे पहले जो यहाँ पर तख्ता-नशीं था,
उसे भी अपने खुदा होने पर बड़ा यकीन था
तुझे यूँ देख में कमला ना होता,
थोडा और पहले आती तो इश्क गहरा ही होता
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