Sunday, December 21, 2014

कवि

80 के दशक की बात है, वो रोज़ सवेरे 5 बजे से अखबार का इंतज़ार करती थी केवल उसकी कवितायेँ पढने के लिए. वो उसे अपने कॉलेज में चाव से सुनाती थी. उसने सारी क्षणिकाएं, कविता अपनी डायरी में चिपका के संजो राखी थी. क्यूंकि उसने कवि को कभी देखा नहीं था इसलिए उसे लगता था की वो कोई सफ़ेद बाल वाला बूढा है, जिसका चार अक्षर का नाम है. 3 साल तक अखबार में कवि के पूरे नाम/फोटो का इंतज़ार करने के बाद, उसकी शादी हो गई.
शादी के दो महीने बाद, पिछले हफ़्तों के अखबारों में से उसकी कविता देखने की फिर से इच्छा हुई. उसने ढेर में सारे अखबार देखे, और आखिरकार उसी पेज पर, उसी किनारे पे, नए शीर्षक के साथ, एक नई कविता थी, जिसे वो अखबार के कारण धुल से छुई हुई उँगलियों से सहला रही थी. आखिर दो महीने बाद वो उसका लिखा हुआ पढ़ रही थी. उसने उस कविता को तीन बार पढ़ा इससे पहले वो क्रेडिट्स पढ़ती
अंत में, उसका नाम उस कवि के पूरे नाम से पहले लिखा था.......... जिसे देख वो भावुक हो गई.
कवि ही उसका पति था. ‪#‎Parents‬ ‪#‎TrueStory‬ 

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