Tuesday, July 30, 2013

ख़त: एक अत्यंत लघु कथा

हर रोज़ ,वो अपने पति के नाम एक love-letter लिखा करती थी ,लैटर बॉक्स में ख़त डालना और फिर बेसब्री से उनके reply का इंतज़ार ,जो अगले दिन की दोपहर तक आ ही जाता था .जैसे ही 
उसे envelope मिलता था ,एक बच्चे जैसी उत्सुकता लेकर ,ख़त को दो या तीन बार जोर से पढ़ती,जब तक उसे ख़त का हर एक-2 शब्द महसूस नहीं हो जाता और फिर एक प्यारभरी मुस्कान लेकर,उनके सुन्दर signature को ऊँगली से छूकर महसूस करती और फिर अगला ख़त लिखने बैठ जाती .

आज जब डाकिया उनके पति के घर चिठ्ठी लेकर पहुंचा ,उसको पडोसी द्वारा बताया गया की वो विधवा महिला, जो घर में पिछले तीन साल से अकेली रह रही थी ,गुज़र चुकी हैं ........

Wednesday, July 17, 2013

आज़ादी

बारिश का मौसम ,पकोड़े , चाय और परिवार ,एक आम आदमी के लिए weekend पे इससे बेहतरीन क्या हो सकता है जिसे facebook पे funny videos शेयर करने में मजा आता हो और दुर्गा माँ के फोटो पे जय मत दी लिखने में .
लड़कों की कुछ आदतें कभी नहीं जाती ,भले ही वो toothpaste का ढक्कन बंद करना हो ,मोज़े अलग दिशाओं में फेंकना या branded कपडे खरीदकर एक महीने में ignore करना ,घंटो tv देखना सब religiously follow होती हैं .
शनिवार का दिन ,TV पे देखि हुई फिल्में आ रही थी .एक था टाइगर ,सिंह इस किंग और जब तक है जान ,अब करें भी क्या ,मुन्नू मिया ने सोचा पड़ोस वाले चचा के हालचाल लियें जाएँ .चचा के यहाँ क्रीम वाले बिस्कुट चाय में डुबा डुबा के इंडियन क्रिकेट,धोनी की तारीफ ...चेन्नई एक्सप्रेस ,शाहरुख़ और कुछ रिश्तेदारों की बुराई के बाद नरेन्द्र मोदी को भी intellectual तरीके से PM बना ही दिया था उन्होंने 
5 बज गए थे .ख़ैर मुन्नू imported gogs लगा के निकले और राजू पान वाले से एक सुट्टे लेकर खुद को ऐसे निहारा जैसे राँझना में उन्हें होना चाहिए था धनुष की जगह .इतने में एक दो लडकियां राजू के खोखे पे आती हुई दिखाई दी .पूछने से पहले मुन्नू ने पूछ डाला "how can i help you maa 'm ?"ये sentence और इसमें accent मार के ma 'am का प्रयोग रामबाण की तरह था .एक लड़की ने जवाब दिया "2 सिगरेट " अब ये सुनकर मुन्नू और राजू , दोनों सन्न, डेविड धवन की 90 's के फिल्मों के कदर खान की तरह .
ख़ैर, उसके बाद कुछ देर कुत्तो को पत्थर फेंक कर उनसे भी दुश्मनी निकलने की कोशिश की ,करते भी क्या ,खाली दिमाग ,पार्क की और चले .तभी पार्क में बैठे हुए एक 14 साल की लड़की वहाँ आकर 4 -5 बच्चो को खिलाने लगी ,खेलने के बाद a for apple सिखाने लगी .जिज्ञासु मुन्नू ने लड़की को अपने पास बुलाया और पुछा "क्या हो रा है ?" बच्ची के पढ़ाने के जवाब में मुन्नू ने कहा ही था की " तुम तो खुद बच्ची हो,पहले खुद तो पढ़ लो " .,मुन्नू की माँ ने आवाज़ दी ," अरे दही ले आ दौड़ के "...लड़की ने जाते हुए मुन्नू को कहा "आपसे मतलब ?,कुछ बड़ा करूंगी......"
मुन्नू ने पहले देखा घूम के , फिर बोले "बहुत बवाली बच्चे हैं आजकल के ........

कल रात जब मुन्नू समोसे वाले की दूकान पे ये सुना रहे थे ...,मुन्नू के लिए जितना sorry state वाली फीलिंग आई उतनी ही उस लड़की के लिए proud वाली.ये सुनके मुझे मुझे आश्चर्य नहीं हुआ की अभी कुछ दिन पहले ही मेरठ के गाँव की 15 साल की रज़िया सुल्तान को U .N Malaala Award मिला है ,48 बच्चों को child labour से बाहर निकलकर पढ़ाने के लिए -->> http://www.firstpost.com/world/15-yr-old-meerut-girl-razia-sultan-receives-first-un-malala-award-953529.html.

आज उठी एक बगावत कल हज़ारो के लिए आज़ादी बनेगी - The Dirty Picture
नारी शक्ति आगे बढे ,हम आपके साथ हैं .जिंदाबाद !!!

Rant पसंद आया तो शेयर करें . अब सारी कहानी एक जगह संकलित http://sagarvishnoi.blogspot.com/

Monday, July 15, 2013

Hard rock aur मुन्नू:

अब आप मुन्नू मियां को तो जान ही गए होंगे उनके पिछले शादी वाले वाकये से .. नहीं जाने तो ये पढ़ें ... http://ht.ly/mYOCA अब मुन्नू खाली तो थे ही ,पकड़ी ट्रेन और पहुच गये दिल्ली अपने दोस्त रितेश के पास .रितेश,जो पुणे में जॉब कर रहा था , राखी की छुट्टी पे घर आया हुआ था. स्टेशन पे रितेश ने मुन्नू को रिसीव किया और मुन्नू ने पकडाया रितेश को अम्मा का बनाये हुए लड्डू का डब्बा' माँ बनायीं है , बेटे तुम्हारे लिए ,खा लियो ' लेकिन तुम्हारी आँख के नीचे भैंस कैसे बंधी है ?? रितेश ने internet,job pressure ,overtime जैसे words यूस करके मुन्नू को समझाने की कोशिश की .रितेश के सर के बाल सलामत थे लेकिन तोंद बेशर्म हो चली थी .घर पहुँचते ही पंजाबी रितेश की माँ ने मुन्नू को ऐसी नज़रों से देखा मानो निरूपा रॉय ने अपनी नव-विवाहित बहूँ को मिनी स्कर्ट में देख लिया हो,अब मुन्नू की बचपन की हरकतें भी तो ऐसी थी, सिट्टी पिट्टी गुम मुन्नू की .एक टिपिकल पंजाबन की तरह पूछने में देर नहीं की उन्होंने " जॉब तो कर नहीं रहा होगा मुन्नू तू ?" मुन्नू ने तपाक से कहा 'बिन्नेस है जी ,प्रॉपर्टी ' और खिसिया दिए .

मुन्नू ने राजमा चावल पेलने के बाद रितेश से शाम को Hard rock चलने को कहा..और साथ में दलील दी , हम फेसबुक पे हैं ,तुम्हारी सारी फोटोज देखी हैं, पुणे की .
nirvana की नयी t -shirt पेहेन के मुन्नू भाई हार्ड-रॉक कैफ़े घुसे और भौंचक रह गए , सबसे पहले उन्होंने फेसबुक पे अपडेट किया with Ritesh इन Hard rock कैफ़े,और बोले अब देखो कैसे laike आयेंगे .आर्डर के लिए मुन्नु मियां ने ३० मिनट ले लिए और बार-2 बैरों को बड़ी नवाबी से बुलाके,ड्रिंक्स के बारे में पूछते .

मुन्नू:इत्ता बड़ा गिटार ,ये ही लेंगे और सबसे पहले ये जो बज रहा है ना ,सुनायेंगे तुम्हें, तुम्हें अच्चा तो लगता है न rock म्यूजिक ?
रितेश : यार बस बोल समझ नहीं आते ,
मुन्नू : अबे हम भी तो केवल दो band के नाम ही जानते हैं ...hahahahha .... रितेश अपने galaxy ग्रैंड को खोलता हुआ updates चेक करने लगा , "ले ,तेरा स्टेटस भी like कर दिया मुन्नू "..
मुन्नू :तुम तो उत्तराखंड भूस्खलन विडियो शेयर कर रहे हो , कहाँ किया ?हाँ... हाँ किये like ..!." रितेश : भाई ये सब जो हुआ है वहाँ ,मैंने सोचा वो शेयर कर दूँ .... भला होगा ......

रितेश और मुन्नू को कौन समझाए की भला ऐसे होता , तो हर कोई दानवीर कर्ण है देश में ,
शायद उनके लिए :
बची है रात और अपना जश्न जारी है....
असल में :
लेकिन ज़रुरत है तमाम मातमों पर इक उम्मीद भारी है....

मुन्नू मियां की ये हरकत अच्छी लगी तो शेयर करें. ;-)
देश को कुछ वालंटियर्स की ज़रुरत है उत्तराखंड में ,अगर आप चलना चाहें तो हमें तुरंत संपर्क करें .

Sonu ki botal: Short Play

5 :30 बज  रहे  थे  ,तारों  के  सोने  का वक़्त  हो  गया  था  और  पिपरिया  की यह  झुग्गी  सुबह  के  साथ  जग  रही  थी  .
पर्दा  उठता  है 
फर्स्ट  लाइट 
 एक  लड़का  (लोकेस  ) चोरी  छुपे  अपना  सामान (गांजा ) लेकर  झुग्गी  से  निकल  रहा  है  .
साउंड्स : बादलों  के  गुच्चे  आवाज़  के  साथ  दस्तक  दे  रहे  हैं  
सेकंड लाइट
 चूल्हे पर चावल चढ़  चुके  हैं  ,औरत  (माँ  ) 
माँ : आरॆऎ  नासपीटे ,उठत  की  नाई ,बर्न  चारपाई  उड़ेले  तुम्हारी  …
सोनू (११    ) : लो  अम्मा  , बदल  और  अगये  ..अब तो पक  गये  तुम्हारे  चावल ....
माँ : हाय  दैया  दैया  .. जे बेमौसम  बरसात  कैसी  ..(हडबडाते  हुए )..ई  ,खड़े  खड़े  भौंक  रहा  है  ..अन्दर  लेकर  आ  सामान  ..मरा  , 
सोनू  : जे  हमे  अँधेरा  बहुत  बुरा  लगे  ,कमरे  में   आओ  तो  अँधेरा  , बहिर   जाओ  तो  वक़्त  बेवक्त  जे  मौसम  ….(खीजते / कसमसाते  हुए ) 
लोकेस  कहाँ  है  ?
माँ : हमें  का  पता  ?, ताफ्रिखोर  है    हरामी  , हमारी  सुनता  कहाँ  है   नासपीटा ..
एक  उसका  बाप  फूँक  देत  है  सराब  में  , एक  बो  उड़ा   देगा  ..होली  है  कल  ,ज़रूर  कुछ  बंदरबाट  करने  में  जुटा   होगा  ..
 लाइट  विथ  ओल्ड  म्यूजिक :
शमशेर  (जो   एक  रिक्शा  चालक  है   ,दारु  पीकर  घर  में  घुसता  है  ) :
लोकेस्वा  कहाँ  है  ?
माँ : हमे  का  पता ?(कसमसाते  हुए  )
सोनू  : ऐ  बाप्पू  , कुछ  पैसे   दो  , बलब  लेन  हैं  , दिन  में   इतना  अँधेरा  रहत  है  , कुछ  नै  दिख्तो  , आज  फांस  चुभ  गई   पाओ   में  ..
शमशेर  : बाकी  झुग्गिया  में   है  कोई   बलब  ??? का  पढना  उड़ना  तो  न  है  (चौंकते  हुए )?????
बलब  लें  दो  इनको   ..भादवा  साले  ..भाग  यहाँ   से  ( झिड़कते  हुए  )
सोनू  दूर  जाकर  गिर  जाता  है  …
सेकंड  लाइट  : 
लोकेस (फोने  पे  ) बहर  नि  निकलेगी  अiज  ?(अपनी  माशूका  से  )
सरिता  बहार  निकल  के  आती  है  
लोकेस  (कहाँ  भागे  चली  जा  रही  है  )
सरिता  :काहे 
लोकेस : रंग  भी  नै  लगा   सकते  ताको ?
सरिता  : पिच्चर  के  डायलॉग   या  भंग ले  के  आए   हो  ?
लोकेस  : पिच्चर  के  हीरो  हमी   to हैं ( हँसते  हुए  , और  फिर  लोकेस   सरिता  के   नर्म   होठों  को  चूम लेता  है  )
सेकंड  लाइट : होली वाले दिन ...
गोलू  ,सोनू  संग  रंग  मिलाने  की तैयारी  क्र  रहे  .सोनू  कमरे  में  रंग  लेने  जाता  है  ,गिर  जाता  है  ,
सोनू  : आआआआआआआईईईईईईई ……इस  हरामी   अँधेरे  ने  बहुत  दुखी  किया  (रूअसा   होते  हुए ) 
सोनू  : ले  पिस्तौल  वाली  पिचकारी   गोलू  ,दाल  सब  पे  रंग  साला    .. 
गोलू  : ऐयॆऎऎऎऎऎऎऎऎऎऎऎ 
सोनू   हरे  की  रंग  की  कैम्प  की  बड़ी  बोतल  में  एक   रंग  का  पेस्ट  डालता  है  ….
अचानक  अन्दर  झुग्गी  से  माँ  की  आवाज़   आती  है  ..
माँ : रे  सोनूऊऊऊऊऊऊउ 
सोनू  भागा  हुआ कमरे  की  और  पहुँचता  है  … (मूवमेंट  ऑफ़   लाइट्स  )
माँ  पसीने  से  लथपथ  और  आँख  में  आंसू लिए हुए .. 
माँ  :रे  तेरा  बाप   भांग  के  नसे  में  गिर  गया  …. 
सोनू  आधा  बहार  ,आधा   अन्दर  खड़ा  है  .. उसकी  बोतल   दूध  की  माफिक   अन्दर  रौशनी  फेंक  रही   है  …
लाइट्स  केवल  झोपड़   के  आधे  हिस्से  पे  (जहाँ  आज  तक  रोशनी  नहीं  थी  )….तेज्ज़ 
समशेर  के खून बह रहा है , माँ कोई लेप लगा रही है हल्दी का  .. लोकेस   ,माँ  पास   ही  बैठे  हैं  ..
सोनू  : अभी  आता  हूँ   
माँ :अरे तेरा बाप यहाँ पड़ा है , खूनम खून  , कहाँ हंड रहा है रे 
सोनू , जो बाप के खून  के भय से ज्यादा कमरे में रौशनी से विचलित है ......
सोनू   : अभी  करता  हूँ   रोशनी  ,जे  साल  बाप  पैसे  नि  देता  न  ,गिर  गया   कुत्ता  नसे  में  , ले …
वेह  , फिर  से  उस  बोतल  में  पानी  ,पेस्ट  दाल  के   लाता  है  कमरे  में  ,लेकिन  इस  बार  कुछ  नहीं  होता  …
(मायूस  होकर  सोनू  बोतल  बहार  फेंक  क्र   चला  जाता  है  )
Scene :  
सोनू  भगा  हुआ  दुकान  पे  जाता  और  
सोनू  : रे  भूरे  , ये  पेस्ट    में  क्या  है  ?
दुकान  दार  : रंग  है  रे   चुत्या  , और  का  मछली  का  तेल  समझा ? 
सोनू  : रे  उसके  अन्दर  क्या  पड़ा  है  ?(खीजते  हुए )
दुकानदार  :मुझे क्या  पता ?दिमाग  न   खा ...
सोनू : साला ,पता नहीं तो दूकान कैसे चलाता है ? ..

सोचता  हुआ  कमरे  की  और  आता  है  ..और  भगा  हुआ  कमरे  की  ऊपर  जाता  है ,बहुत देर सोचने के बाद 
सोनू  : जे  लगा  दी  ,टीन  के  पास  , अब  आवेग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्गी  (येह  ) रोशनी  ...
सोनू  : बापू  ,ले  तेरे  सराब  की  बोतल  से  ये  अच्छी  ..
शमशेर : रुक  ,ब्हेंचू ....
.
सोनू  लोकेस  की  पेंट  से  पैसे   चुराते   हुए  …
सीन :
लोकेस  : भादवे  , कहाँ  गये  पैसे (पीट  ते  हुए  सोनू  को  )
सोनू  (भागते  हुए ) : नि  बताऊंगा  …
सोनू  दरवाजा  बंद  क्र  देता  है  
लोकेस  : साले  खोल  दरवज्जा  , 
सोनू  : नि  खोलूँगा   ..तू  सालअ   गांजा  लेकर  एयासी  करे  , में   बलब  जलाया  तो  तेरे  को   दिक्कत  ..
लोकेस  : अभी  तेरा  बलब  बनता  हूँ  (दरवाजा  खोलते  हुए )
लोकेस  सोनू  का  टांग  मरोड़  देता  है  , सोनू  उसे  बता  देता  है  ..की  वो   दूकान  से  रंग  वाला  पेस्ट  लाया  था .. 
लोकेस  : ले  तेरे  रंग   वाले  पेस्ट  ,चाट  ले , खा  ले  दही  बना  के  इनकू  (पेस्ट  को  तोड़  मरोड़  कर )कुटिल हंसी के साथ 
सोनू   होकर  बैठ  जाता  है  और  अपनी  जेब  से  दो  रंग  वाले  पेस्ट  निकल  कर  .. सुबह  होने  का  इंतज़ार  करने  लगता  है  
सोनू  :रे  छोटू  इधर  आ 
छोटू  : क्या   बे  ..
सोनू  : आजा   तेरे  झोपड़  में  बलब  जलाऊं  ?
छोटू  : तेरा  लंगड़ा  बाप  देगा  न  पैसे  
सोनू  : भक    छुए  .. आजा  , 
सोनू  ,छोटू  से  पानी  की  बोतल  में  रंग   वाला  पेस्ट  डालकर  ,  टीन  के  बीच लगाता  है  ,जिसपे  सूरज  की  रौशनी  पड़ने  पे  उसकी  झुग्गी  दिन   में  रोशन  हो  उठती  है  
सीन :
सोनू  इसके  बाद  झुग्गी  की  २०२   झोपड़  से  ३  रूपए  लेता  है(हर झोपड़ से) और साडी   झोपड़ो  में       
सोनू  अपने  इस  अनोखे  काम  के  लिए  सम्मानित  होता  है  .. वो   भी  prof.  अनिल  गुप्ता  द्वारा  
सीन  : 
सम्मलेन  के  दोरान  :
लोकेस  :  ऐ  सरिता  ,आ  गया  पैसा  घर  में  ..हिहिहिह्हिही  ,अब   तो  तुम्हार  लिए  हार  लावेंगे ..
 आर  पर्दा  गिरता  है  
कुछ  करने  की  ललक  हो   ,तो  राह  ज़रूरी  नहीं  
छोटा  सा   दिया  जलाने के  लिए  , एक  कदम  बहुत  होता  है  .

प्रज्ञा की शादी और मुन्नू मियां


लड़के वालों की और से नाचने वाले बार बार fevicol गाने की फरमाइश कर रहे थे, करें भी क्यूँ ना ,मुर्गा ,अल्कोहल वाले स्टेप्स जो हैं उसमें और एक दोस्त ने तो जो नागिन step दिखाया है,अहा ,गुद गुदी हो गयी सबको,उठकर कोट से धुल साफ़ की और गोविन्दा अंदाज़ में फिर लग गया झूमने .गोंडा वाले फूफा का मन तो कर रहा था की वो भी कूद पड़ें नाच में ,तुरंत बुआ ने आँख तरेरी,अब लड़की वाले जो ठहरे ,उसकी भी कुछ limitations होती हैं ,उन्होंने अपना मन मारा और अपने GALAXY S4 को keypad on -of देखने करके देखने लगे .

दुल्हे राजिव को सालों ने बघ्घी से उतारा और प्रज्ञा के पिताजी ने ऐसे गले लगाया जैसे उनको खुद का बेटा बरसों बाद आया हो .आस पास की औरतें जिनका discussion अभी तक एक दुसरे के गहने ,साड़ी और पल्लुओं पर था ,अब प्रज्ञा की पिताजी के आंसुओं पे distract हो गया था breaking news की तरह ख़ैर मुन्नू मियां ठहरे मोटी बुद्धि, उनकी समझ कहाँ आना था ?उन्हें तो थोडा दुःख था की कालोनी की लड़की की शादी हो रही है,( हमेशा हरियाली की खोज में लगे मुन्नू थोड़े दिलफेंक जो थे ) .थोड़ी देर बाद उन्हें मूंग की दाल के चीले की फ़िक्र हुई .चीला निबटाने के बाद उनकी पसंदीदा चीज़ थी आलू की टिक्की,जहां लगा था जमघट auntiyon ,दूर की बहनों ,भाभियों और कुछ अन्य सुन्दर चेहरों का जैसे सब हरिद्वार के हर की पौड़ी पे हाथ आगे करके सुर्यमस्कर कर रही हों .,लेकिन मुन्नू मियां ठहरे पुराने तीरंदाज़ ,मीठी बातों की पोटली खोली और शुरू हो गए जी, भैया कैसे हैं ?आपने ये साड़ी myntra .com से मंगवाई ?आखिरी बार जो आपके यहाँ हलवा खाया था ना भाभी जी , भूला नहीं अभी तक .टिक्की पे हलकी सौंठ डलवा के निकल लिए मुन्नू, ricky behl से कम नहीं  समझ रहे थे खुद को .vanilla आइसक्रीम पे गुलाबजामुन डाला ही था ,की कानों में पड़ोसन की टीटीहेरी जैसी बोली सुनाई दी,ये मुन्नू देखो,अरे पीछे सिंह साहब का छोटा वाला , खाली है , अब दिखा है , ना जाने कहाँ था 2 साल से , मुन्नू ने सोचा अब इनको मेरे standard के बारे में क्या पता ?

चले गए कोने में,फ़ोन पे busy हो गये,अब रात को माशूका ही होगी मुन्नू की ,(शक्ल से कोयले की खदान के मजदूर लगने वाले मुन्नू जैसों की माशूका ?? बताओ !)
 ख़ैर photosession निकला ,फेरे होने जा रहे थे .
मुन्नू दुल्हन देख के चौंक गया,ये.......... वही प्रज्ञा है ?? गोंडा वाले फूफा से उन्होंने अकेले में पुछा तो उन्होंने कहा :तुम्हे नहीं पता ? प्रज्ञा के चेहरे को जला दिया था किसी नामर्द ने तेज़ाब फेंक के 1 साल पहले ,शर्मा जी 10 लाख के नीचे आगये थे operation वगरह में ,लेकिन भैया प्रज्ञा ने हिम्मत नहीं हारी थी ,नाम बताकर ,पुलिस के लफड़े में पड़कर,उस नीच को तो जेल भिजवाया ही और उसके 4 महीने बाद एक N .G .O शुरू कर खुद के जैसो पीड़ित लोगो को इन्साफ दिलाने के लिए आशा बनकर उभरी है ,लेकिन शर्मा जी को टेंशन थी प्रज्ञा की शादी की ,जिसकी हामी प्रज्ञा के दोस्त ने भरकर प्यार की अजब कहानी लिखी है भैया, लड़के का खुद का कॉल सेंटर है-गरीबो के लिए ,,इसलिए तो प्रज्ञा के पापा की आँखों में पानी था.......... ,पूरी शादी लड़के वालो ने की है,,,,दुनिया के हर लड़की वाले ने ठेका थोड़े लिया है की लड़की के साथ-२ पैसे भी दें ,,......बताओ ,दुनिया में ,ऐसे भी लोग हैं ... ......................................(शान्ति )
और एक तुम हो मुन्नू , निकम्मे , वहीँ के वहीँ !
मुन्नू : अमां यार , तुम ..,तुम गोंडा ही जाओ , शक्ल से बड़ा तुम्हारी तोंद है ,तोंदा निकाल के खेलो ,अपना ,गैलेक्सी ...s4 .... .
मुन्नू हैरान था ,कान में earphones डाल के टेम्पो पकड़ ,निकल गया रात को घर के लिए .earphones से जो गाना सुन रहा था गाने के बोल कुछ इस तरह थे :
एक जीत तू है , एक हार मैं हूँ 
हार जीत जोड़े 
वो तार मैं हूँ ........

मुन्नू शायद अब भी अनजान था ,लूटेरा के इस गीत के बोल से भी और प्यार से भी !..............
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Crowd कैसा है ?? Matters ...

5 जुलाई आगयी थी .राँझना जैसी सराहनिए फिल्म देखने के बाद हमने मूड बना लिया था लूटेरा देखने का . options और भी थे lone ranger के रूप में ,लेकिन हम ठहरे हिंदी फिल्मी कीड़ा . अब हम आये हुए थे अपने घर मेरठ ,जी हाँ वही शहर ,जिसके यात्रा की कहानी आपने पिछले हफ्ते सुनी थी .first day first show का टिकेट लेने हम आगे बढ़े माल की तरफ ,अब फर्स्ट डे फर्स्ट शो महंगाई से लड़ने के हिसाब से देखा जा रहा है ,ये आप समझ ही सकते हैं ,कोई सरकार ने सब्सिडी तो दी नहीं .सामने देखा बेंताहा भीड़ टिकटघर पे .लोग indian railways की जनरल बोगी की माफिक लदे जा रहे थे .पास जाकर पता चला की इतनी भीड़ policegiri के लिए थी .बात भी सही है ,लूटेरा जैसी State -of the -आर्ट , critically acclaimed फिल्म के लिए थोड़े न आएगी .चेकिंग कराकर हमें सिनेमा हॉल में पहला शो के लिए घुसने का एहसास इस तरह आ रहा था जैसे हॉल से निकलकर हमारा रिव्यु ही छापेगा सारे अखबारों में,न्यूज़ चैनल में .

दिल्ली, पुणे में हॉल के अन्दर एंट्री से पहले crowd चेक होता था, लेकिन यहाँ ऐसा करना बेईमानी लग रहा था .ख़ैर ,D-10 ढून्दी, हॉल में बैठे ही थे की महक आनी शुरू हो गयी , चैनी खैनी की थी या दिलबाग की ,जो भी था ,जला दिया था हमारे nose hair को .बत्तियां बंद हुई ही थी की AC का आनंद लेने वाले fan ने आवाज़ लगाईं : "रे भाई AC तो चला दे " , चलो ये रस्म अदाएगी भी हुई और "मनुष्य के स्पंज सामान फेफड़े " के साथ Late मुकेश हराने आ गया था लोगो को आगाह करने धुम्रपान से. 


फिल्म शुरू हुई और हम डूबते चले गए विक्रम मोत्वाने की उस प्यार भरी पेंटिंग में .ये वही निर्देशक थे जिहोने Udaan से आसमान को छुआ था , उसकी कविता हमे अज भी याद थी .बेहद धीमी गति से बढती हुई फिल्म शायद हमारे पड़ोसियों को पसंद नहीं आरही थी ,इसलिए कई बार उन्होंने डायरेक्टर के सगे संबंधियों को याद किया और शत्रुघ्न सिन्हा को भी हिचकी दिलवाई लेकिन जिस एहसास से हम रूबरू हुए , नहा गए थे प्यार से ,ये कर्णप्रिय संगीत का कमाल था जिसने हमे जकड़ लिया था .फिल्म ख़तम होने ही वाली थी की आगे की ओर शुरू हो गई थी हाथापाई ,अब हमारा शहर वास्सेय्पुर से कम थोड़े ही है ,सगे संबंधियों को फिर से याद किया गया और हॉल से बाहर मिलने को कहा गया ,कुछ IPHONE3 से नंबर भी मिलाये गए ,लेकिन जब तक ये मामला सुलझता ,स्क्रीन पर credits ,थैंक्स वाली पट्टी शुरू हो चुकी थी .

एक अजनबी से climax पूछने के बाद 
झुंझलाते हुए बहर निकले ही थे की हमें moral of the story मिल गया ,रिक्शा के पीछे लिखा हुआ :

नीम का पेड़ चन्दन से कम नहीं ,
हमारा मेरठ लन्दन से कम नहीं 

इतने प्यारभरे माहौल में हमने फिलम निपटाई , कम साहसिक काम था ? लेकिन हमने कान पकड़ लिए, आगे से crowd का ख़याल रखकर ही जायेंगे  .
crowd matters !
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Pune to Meerut : सुहाना सफ़र

पिछले साल pune से dilli आते हुए यात्रा का एक संस्मरण :
2 जून 2012 

कहते हैं कि बहुत कम ऐसे दिल्लीवाले हैं जो ये कह सकें कि वो originally दिल्ली के हैं. पर दिल्ली कि अच्छी बात यही है कि दिल्ली फिर भी सबकी है . फिर भी मेरे जैसे लाखों या क्या पता अब करोड़ों लोगों के लिए अगर "घर" कहा जाये तो कोई बिहार . बोलेगा, कोई बंगाल और मैं बोलूँगा यू .पी. घर तो वही है. तो क्या हुआ जो वहां जाना पिछले एक साल में अब बहुत ही कम हो पता था . आखिर तीर्थयात्रा रोज़ रोज़ तो की नहीं जाती.
पुणे से मुंबई हमारा सफ़र आरामदायक था क्यूंकि volvo में जो बैठे थे , थोड़ी देर अपने भाई के विश्राम किया और फिर चल पड़े स्टेशन की ओर

तो इस बार ऐसा हुआ कि टिकट राजधानी एक्सप्रेस कि ली गयीं. पहली बार ज़िन्दगी में ऐसा शुभ काम किया हमने.. सुना था कि इसमें सूप , चाय , कॉफ़ी और पता नहीं और क्या क्या चीज़ें मिलती हैं .

बचपन से जम्मूतवी , इंटरसिटी और यू . पी दिल्ली की ट्रेनों में s1 का सफ़र किया था तो हमारे लिए A1 B1 का सफ़र करना बड़ी बात तो थी ही , लेकिन हम ये सोचते थे की क्या ख़ास होता हैं उन लोगों में जो उनमें सफ़र करते हैं ,उस दिन पता चला की Galaxy S4 ,S5 aur Iphone ३ JAISE यंत्रों से लेस होते हैं वे . ऐसी epiphany आने के बाद हमने सामने देखा कि एक मैडम i-pod पर गाने सुन रहीं थी. Come on, ipod?? अब कुछ तो standard रखो. आप राजधानी में सफ़र कर रहे हो. बाहर होता , तो शायद ऐसा MODERN तरीके से न सोचता .पर कहते हैं न कि खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. वो मैडम कि भी नाक चढ़ी हुई थी थोड़ी. शायद सोच रही थी कि ये किन low class जंगलियों के बीच फँस गयी. शक्ल से बंगालन लग रहीं थी. एक ज़नाब service boy से ऊँची आवाज़ में लड़ाई कर रहे थे . बाकी लोगों को लड़ाई से या फिर उन भाईसाब के elitist रवैये से कोई फरक नहीं पड़ रहा था. वो सब Indian लग रहे थे .
खैर. वैसे मैं २-३ बार भाई के पैसों से flight से भी सफ़र कर चुका हूँ. बड़े लोग aeroplane से सफ़र को flight से आना बोलते हैं . पता नहीं क्यूँ? वैसे ठीक भी है. अब इंसान सिर्फ aeroplane से ही तो उड़ सकता है न. तो राजधानी से जाना कोई तोप मारने जैसा तो है नहीं. कुछ तो लोग ये कह सकते हैं कि ये तो ऐसा है जैसे नोबेल prize मिलने के बाद भारत रत्न देना जैसे हमारी सरकार ने मदर टेरेसा और अमर्त्य सेन के साथ किया था. पर ऐसी किसी भी जगह जहाँ etiquette follow करना हो,भैया वहां मेरे हाथ पांव फूलने लगते हैं. अब जैसे कि शुरुआत में thermos लाकर दिया गया, जिसे किसी प्रकार use करके चाय बनानी थी. अब उसके साथ हाथ पांव मारना हमें तो भरे डब्बे में अपनी फजीहत को न्योता देना लगा. चाय हम वैसे भी कम पीते हैं फिर भी हमने ये कह कर पिंड छुड़ाया कि भाई चाय से तो हमारी पिछले जन्म कि दुश्मनी है . तो service बॉय(जो शक्ल से आँखें का चंकी पाण्डेय लग रहा था) ने पूछ दिया, "Sir, coffee पीयेंगे ?" हमारा सर रत्ती भर हाँ कि मुद्रा में हिलना शुरू ही क्या हुआ था कि उसने फिर से हमारी तरफ thermos बढ़ाना शुरू कर दिया. किसी तरह Toilet का बहाना बना कर वहां से भागना पड़ा.



ये सारी बातें हुई ही थीं की हमें थोड़ी देर के लिए नींद आ गयी. उठने पर पता चला कि कोई tomato soup पिलाने कि रस्म होती है जो miss हो गयी. अब 1600 दिए थे इस अय्याशी के लिए. मन तो पूरा कर रहा था कि जहाँ तक हो सके पाई पाई वसूल की जाये . पर लिहाज़ के वास्ते चुपचाप बैठा रहा. पर थोड़ी देर में वो service boy खुद ही आ कर tomato soup दे गया. पीते ही पता लग गया कि सब्जी मंडी में जो सबसे सस्ते टमाटर होते हैं वो जाते कहाँ हैं .

एक मैडम करीब करीब हर चीज़ को बदलने के लिए service boy पर चीख चिल्ला रहीं थी जिसके लिए उनके पतिदेव उन्हें बीच बीच में थोडा घुड़की भी दे रहे थे .थोड़ी सी पिघली ice cream पर उनके husband को थोड़ी refinement चाहिए थी .अब राजधानी के कूपे में राजाओं जैसा नहीं किया तो फिर क्या किया ?

फिर एक और रस्म अदायगी हुई. Service boy सबसे tip मांगने आया. यहाँ ऐसा भी होता है!!! बटुआ टटोल कर देखा. सिर्फ 100-100 के नोट थे. तो हमारे सामने उसने 10-10 के नोटों का अम्बार लगा दिया मीठी वाली रंग बिरंगी सौंफ के साथ और कहा, " सर, जितनी श्रद्धा है उतनी उठा लीजिये." Tipping की formality को उसने झट से reverse tipping में बदल दिया. 10-10 के नोट उठाते हुए उसकी tray से , भरे डब्बे के सामने हम तो शर्म से पानी-पानी हो गए थे. अगर न हुए होते न, तो 100 की पत्ती जिससे न जाने क्या - 2 आजाता, निकल गयी होती हमारे हाथ से .

खैर, सुबह हुई. स्टेशन से बाहर निकले. निकलते ही Samsung Galaxy S4 के गगनचुम्बी hoardings ने स्वागत किया. अब भैया New Delhi में उतरे थे. कोई मेरठ तो था नहीं जो बनयान की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिखेंगी .

मेट्रो से आनंद विहार बस अड्डे आने के बाद , हमने कौशाम्बी से उत्तर प्रदेश परिवहन की बस पकड़ी . बीड़ी के धुंए से महकती हुई, पान की पीकों से सजी ये बसें बचपन से आजतक ऐसी ही हैं .रिश्ता बन गया है इनसे जैसे जबरदस्ती घर में घुसने वाले पडोसी से बनाना पड़ता है .


सड़कें माधुरी दिक्षित की जवानी तो नहीं बनीं ,पर इतना है की 2 :30 घंटे के बस के सफ़र में आप एक proper सी झपकी तो मार ही सकते हैं. गड्ढों के ऊपर उछलने से आपको नींद आजाए तो भाग्यवान समझीयेगा खुद को .आप दुनिया की कितनी ही अच्छी सड़कों पे घूम आयें , यू . पी में घुसते ही आपकी गर्दन अकड़ जाएगी और सफ़र लम्बा हो तो शरीर टूटना स्वाभाविक है .Drizzling land ,शादीशुदा जीवन को बेहतर बनाने के उपाय,यू .पी और भारत का विकास by समाजवादी पार्टी ,3 महीने में फर्राटा अंग्रेजी सीखें जैसे naye पोस्टर lag जाएँ लेकिन देहरादून जाने वाला ये मुख्य मार्ग की सड़क न जाने कब चौड़ी होगी .

दिखते- दिखाते , पढ़ते-पढ़ाते, झपकियाँ लेते हम घर पहुँच गए मेरठ बाकी की कहानी, कभी बाद में. ये rant अच्छा लगा तो शेयर जरूर कीजियेगा.