5 :30 बज रहे थे ,तारों के सोने का वक़्त हो गया था और पिपरिया की यह झुग्गी सुबह के साथ जग रही थी .
पर्दा उठता है
फर्स्ट लाइट
एक लड़का (लोकेस ) चोरी छुपे अपना सामान (गांजा ) लेकर झुग्गी से निकल रहा है .
साउंड्स : बादलों के गुच्चे आवाज़ के साथ दस्तक दे रहे हैं
सेकंड लाइट
चूल्हे पर चावल चढ़ चुके हैं ,औरत (माँ )
माँ : आरॆऎ नासपीटे ,उठत की नाई ,बर्न चारपाई उड़ेले तुम्हारी …
सोनू (११ ) : लो अम्मा , बदल और अगये ..अब तो पक गये तुम्हारे चावल ....
माँ : हाय दैया दैया .. जे बेमौसम बरसात कैसी ..(हडबडाते हुए )..ई ,खड़े खड़े भौंक रहा है ..अन्दर लेकर आ सामान ..मरा ,
सोनू : जे हमे अँधेरा बहुत बुरा लगे ,कमरे में आओ तो अँधेरा , बहिर जाओ तो वक़्त बेवक्त जे मौसम ….(खीजते / कसमसाते हुए )
लोकेस कहाँ है ?
माँ : हमें का पता ?, ताफ्रिखोर है हरामी , हमारी सुनता कहाँ है नासपीटा ..
एक उसका बाप फूँक देत है सराब में , एक बो उड़ा देगा ..होली है कल ,ज़रूर कुछ बंदरबाट करने में जुटा होगा ..
लाइट विथ ओल्ड म्यूजिक :
शमशेर (जो एक रिक्शा चालक है ,दारु पीकर घर में घुसता है ) :
लोकेस्वा कहाँ है ?
माँ : हमे का पता ?(कसमसाते हुए )
सोनू : ऐ बाप्पू , कुछ पैसे दो , बलब लेन हैं , दिन में इतना अँधेरा रहत है , कुछ नै दिख्तो , आज फांस चुभ गई पाओ में ..
शमशेर : बाकी झुग्गिया में है कोई बलब ??? का पढना उड़ना तो न है (चौंकते हुए )?????
बलब लें दो इनको ..भादवा साले ..भाग यहाँ से ( झिड़कते हुए )
सोनू दूर जाकर गिर जाता है …
सेकंड लाइट :
लोकेस (फोने पे ) बहर नि निकलेगी अiज ?(अपनी माशूका से )
सरिता बहार निकल के आती है
लोकेस (कहाँ भागे चली जा रही है )
सरिता :काहे
लोकेस : रंग भी नै लगा सकते ताको ?
सरिता : पिच्चर के डायलॉग या भंग ले के आए हो ?
लोकेस : पिच्चर के हीरो हमी to हैं ( हँसते हुए , और फिर लोकेस सरिता के नर्म होठों को चूम लेता है )
सेकंड लाइट : होली वाले दिन ...
गोलू ,सोनू संग रंग मिलाने की तैयारी क्र रहे .सोनू कमरे में रंग लेने जाता है ,गिर जाता है ,
सोनू : आआआआआआआईईईईईईई ……इस हरामी अँधेरे ने बहुत दुखी किया (रूअसा होते हुए )
सोनू : ले पिस्तौल वाली पिचकारी गोलू ,दाल सब पे रंग साला ..
गोलू : ऐयॆऎऎऎऎऎऎऎऎऎऎऎ
सोनू हरे की रंग की कैम्प की बड़ी बोतल में एक रंग का पेस्ट डालता है ….
अचानक अन्दर झुग्गी से माँ की आवाज़ आती है ..
माँ : रे सोनूऊऊऊऊऊऊउ
सोनू भागा हुआ कमरे की और पहुँचता है … (मूवमेंट ऑफ़ लाइट्स )
माँ पसीने से लथपथ और आँख में आंसू लिए हुए ..
माँ :रे तेरा बाप भांग के नसे में गिर गया ….
सोनू आधा बहार ,आधा अन्दर खड़ा है .. उसकी बोतल दूध की माफिक अन्दर रौशनी फेंक रही है …
लाइट्स केवल झोपड़ के आधे हिस्से पे (जहाँ आज तक रोशनी नहीं थी )….तेज्ज़
समशेर के खून बह रहा है , माँ कोई लेप लगा रही है हल्दी का .. लोकेस ,माँ पास ही बैठे हैं ..
सोनू : अभी आता हूँ
माँ :अरे तेरा बाप यहाँ पड़ा है , खूनम खून , कहाँ हंड रहा है रे
सोनू , जो बाप के खून के भय से ज्यादा कमरे में रौशनी से विचलित है ......
सोनू : अभी करता हूँ रोशनी ,जे साल बाप पैसे नि देता न ,गिर गया कुत्ता नसे में , ले …
वेह , फिर से उस बोतल में पानी ,पेस्ट दाल के लाता है कमरे में ,लेकिन इस बार कुछ नहीं होता …
(मायूस होकर सोनू बोतल बहार फेंक क्र चला जाता है )
Scene :
सोनू भगा हुआ दुकान पे जाता और
सोनू : रे भूरे , ये पेस्ट में क्या है ?
दुकान दार : रंग है रे चुत्या , और का मछली का तेल समझा ?
सोनू : रे उसके अन्दर क्या पड़ा है ?(खीजते हुए )
दुकानदार :मुझे क्या पता ?दिमाग न खा ...
सोनू : साला ,पता नहीं तो दूकान कैसे चलाता है ? ..
सोचता हुआ कमरे की और आता है ..और भगा हुआ कमरे की ऊपर जाता है ,बहुत देर सोचने के बाद
सोनू : जे लगा दी ,टीन के पास , अब आवेग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्गी (येह ) रोशनी ...
सोनू : बापू ,ले तेरे सराब की बोतल से ये अच्छी ..
शमशेर : रुक ,ब्हेंचू ....
.
सोनू लोकेस की पेंट से पैसे चुराते हुए …
सीन :
लोकेस : भादवे , कहाँ गये पैसे (पीट ते हुए सोनू को )
सोनू (भागते हुए ) : नि बताऊंगा …
सोनू दरवाजा बंद क्र देता है
लोकेस : साले खोल दरवज्जा ,
सोनू : नि खोलूँगा ..तू सालअ गांजा लेकर एयासी करे , में बलब जलाया तो तेरे को दिक्कत ..
लोकेस : अभी तेरा बलब बनता हूँ (दरवाजा खोलते हुए )
लोकेस सोनू का टांग मरोड़ देता है , सोनू उसे बता देता है ..की वो दूकान से रंग वाला पेस्ट लाया था ..
लोकेस : ले तेरे रंग वाले पेस्ट ,चाट ले , खा ले दही बना के इनकू (पेस्ट को तोड़ मरोड़ कर )कुटिल हंसी के साथ
सोनू होकर बैठ जाता है और अपनी जेब से दो रंग वाले पेस्ट निकल कर .. सुबह होने का इंतज़ार करने लगता है
सोनू :रे छोटू इधर आ
छोटू : क्या बे ..
सोनू : आजा तेरे झोपड़ में बलब जलाऊं ?
छोटू : तेरा लंगड़ा बाप देगा न पैसे
सोनू : भक छुए .. आजा ,
सोनू ,छोटू से पानी की बोतल में रंग वाला पेस्ट डालकर , टीन के बीच लगाता है ,जिसपे सूरज की रौशनी पड़ने पे उसकी झुग्गी दिन में रोशन हो उठती है
सीन :
सोनू इसके बाद झुग्गी की २०२ झोपड़ से ३ रूपए लेता है(हर झोपड़ से) और साडी झोपड़ो में
सोनू अपने इस अनोखे काम के लिए सम्मानित होता है .. वो भी prof. अनिल गुप्ता द्वारा
सीन :
सम्मलेन के दोरान :
लोकेस : ऐ सरिता ,आ गया पैसा घर में ..हिहिहिह्हिही ,अब तो तुम्हार लिए हार लावेंगे ..
आर पर्दा गिरता है
कुछ करने की ललक हो ,तो राह ज़रूरी नहीं
छोटा सा दिया जलाने के लिए , एक कदम बहुत होता है .