Monday, July 15, 2013

Pune to Meerut : सुहाना सफ़र

पिछले साल pune से dilli आते हुए यात्रा का एक संस्मरण :
2 जून 2012 

कहते हैं कि बहुत कम ऐसे दिल्लीवाले हैं जो ये कह सकें कि वो originally दिल्ली के हैं. पर दिल्ली कि अच्छी बात यही है कि दिल्ली फिर भी सबकी है . फिर भी मेरे जैसे लाखों या क्या पता अब करोड़ों लोगों के लिए अगर "घर" कहा जाये तो कोई बिहार . बोलेगा, कोई बंगाल और मैं बोलूँगा यू .पी. घर तो वही है. तो क्या हुआ जो वहां जाना पिछले एक साल में अब बहुत ही कम हो पता था . आखिर तीर्थयात्रा रोज़ रोज़ तो की नहीं जाती.
पुणे से मुंबई हमारा सफ़र आरामदायक था क्यूंकि volvo में जो बैठे थे , थोड़ी देर अपने भाई के विश्राम किया और फिर चल पड़े स्टेशन की ओर

तो इस बार ऐसा हुआ कि टिकट राजधानी एक्सप्रेस कि ली गयीं. पहली बार ज़िन्दगी में ऐसा शुभ काम किया हमने.. सुना था कि इसमें सूप , चाय , कॉफ़ी और पता नहीं और क्या क्या चीज़ें मिलती हैं .

बचपन से जम्मूतवी , इंटरसिटी और यू . पी दिल्ली की ट्रेनों में s1 का सफ़र किया था तो हमारे लिए A1 B1 का सफ़र करना बड़ी बात तो थी ही , लेकिन हम ये सोचते थे की क्या ख़ास होता हैं उन लोगों में जो उनमें सफ़र करते हैं ,उस दिन पता चला की Galaxy S4 ,S5 aur Iphone ३ JAISE यंत्रों से लेस होते हैं वे . ऐसी epiphany आने के बाद हमने सामने देखा कि एक मैडम i-pod पर गाने सुन रहीं थी. Come on, ipod?? अब कुछ तो standard रखो. आप राजधानी में सफ़र कर रहे हो. बाहर होता , तो शायद ऐसा MODERN तरीके से न सोचता .पर कहते हैं न कि खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. वो मैडम कि भी नाक चढ़ी हुई थी थोड़ी. शायद सोच रही थी कि ये किन low class जंगलियों के बीच फँस गयी. शक्ल से बंगालन लग रहीं थी. एक ज़नाब service boy से ऊँची आवाज़ में लड़ाई कर रहे थे . बाकी लोगों को लड़ाई से या फिर उन भाईसाब के elitist रवैये से कोई फरक नहीं पड़ रहा था. वो सब Indian लग रहे थे .
खैर. वैसे मैं २-३ बार भाई के पैसों से flight से भी सफ़र कर चुका हूँ. बड़े लोग aeroplane से सफ़र को flight से आना बोलते हैं . पता नहीं क्यूँ? वैसे ठीक भी है. अब इंसान सिर्फ aeroplane से ही तो उड़ सकता है न. तो राजधानी से जाना कोई तोप मारने जैसा तो है नहीं. कुछ तो लोग ये कह सकते हैं कि ये तो ऐसा है जैसे नोबेल prize मिलने के बाद भारत रत्न देना जैसे हमारी सरकार ने मदर टेरेसा और अमर्त्य सेन के साथ किया था. पर ऐसी किसी भी जगह जहाँ etiquette follow करना हो,भैया वहां मेरे हाथ पांव फूलने लगते हैं. अब जैसे कि शुरुआत में thermos लाकर दिया गया, जिसे किसी प्रकार use करके चाय बनानी थी. अब उसके साथ हाथ पांव मारना हमें तो भरे डब्बे में अपनी फजीहत को न्योता देना लगा. चाय हम वैसे भी कम पीते हैं फिर भी हमने ये कह कर पिंड छुड़ाया कि भाई चाय से तो हमारी पिछले जन्म कि दुश्मनी है . तो service बॉय(जो शक्ल से आँखें का चंकी पाण्डेय लग रहा था) ने पूछ दिया, "Sir, coffee पीयेंगे ?" हमारा सर रत्ती भर हाँ कि मुद्रा में हिलना शुरू ही क्या हुआ था कि उसने फिर से हमारी तरफ thermos बढ़ाना शुरू कर दिया. किसी तरह Toilet का बहाना बना कर वहां से भागना पड़ा.



ये सारी बातें हुई ही थीं की हमें थोड़ी देर के लिए नींद आ गयी. उठने पर पता चला कि कोई tomato soup पिलाने कि रस्म होती है जो miss हो गयी. अब 1600 दिए थे इस अय्याशी के लिए. मन तो पूरा कर रहा था कि जहाँ तक हो सके पाई पाई वसूल की जाये . पर लिहाज़ के वास्ते चुपचाप बैठा रहा. पर थोड़ी देर में वो service boy खुद ही आ कर tomato soup दे गया. पीते ही पता लग गया कि सब्जी मंडी में जो सबसे सस्ते टमाटर होते हैं वो जाते कहाँ हैं .

एक मैडम करीब करीब हर चीज़ को बदलने के लिए service boy पर चीख चिल्ला रहीं थी जिसके लिए उनके पतिदेव उन्हें बीच बीच में थोडा घुड़की भी दे रहे थे .थोड़ी सी पिघली ice cream पर उनके husband को थोड़ी refinement चाहिए थी .अब राजधानी के कूपे में राजाओं जैसा नहीं किया तो फिर क्या किया ?

फिर एक और रस्म अदायगी हुई. Service boy सबसे tip मांगने आया. यहाँ ऐसा भी होता है!!! बटुआ टटोल कर देखा. सिर्फ 100-100 के नोट थे. तो हमारे सामने उसने 10-10 के नोटों का अम्बार लगा दिया मीठी वाली रंग बिरंगी सौंफ के साथ और कहा, " सर, जितनी श्रद्धा है उतनी उठा लीजिये." Tipping की formality को उसने झट से reverse tipping में बदल दिया. 10-10 के नोट उठाते हुए उसकी tray से , भरे डब्बे के सामने हम तो शर्म से पानी-पानी हो गए थे. अगर न हुए होते न, तो 100 की पत्ती जिससे न जाने क्या - 2 आजाता, निकल गयी होती हमारे हाथ से .

खैर, सुबह हुई. स्टेशन से बाहर निकले. निकलते ही Samsung Galaxy S4 के गगनचुम्बी hoardings ने स्वागत किया. अब भैया New Delhi में उतरे थे. कोई मेरठ तो था नहीं जो बनयान की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिखेंगी .

मेट्रो से आनंद विहार बस अड्डे आने के बाद , हमने कौशाम्बी से उत्तर प्रदेश परिवहन की बस पकड़ी . बीड़ी के धुंए से महकती हुई, पान की पीकों से सजी ये बसें बचपन से आजतक ऐसी ही हैं .रिश्ता बन गया है इनसे जैसे जबरदस्ती घर में घुसने वाले पडोसी से बनाना पड़ता है .


सड़कें माधुरी दिक्षित की जवानी तो नहीं बनीं ,पर इतना है की 2 :30 घंटे के बस के सफ़र में आप एक proper सी झपकी तो मार ही सकते हैं. गड्ढों के ऊपर उछलने से आपको नींद आजाए तो भाग्यवान समझीयेगा खुद को .आप दुनिया की कितनी ही अच्छी सड़कों पे घूम आयें , यू . पी में घुसते ही आपकी गर्दन अकड़ जाएगी और सफ़र लम्बा हो तो शरीर टूटना स्वाभाविक है .Drizzling land ,शादीशुदा जीवन को बेहतर बनाने के उपाय,यू .पी और भारत का विकास by समाजवादी पार्टी ,3 महीने में फर्राटा अंग्रेजी सीखें जैसे naye पोस्टर lag जाएँ लेकिन देहरादून जाने वाला ये मुख्य मार्ग की सड़क न जाने कब चौड़ी होगी .

दिखते- दिखाते , पढ़ते-पढ़ाते, झपकियाँ लेते हम घर पहुँच गए मेरठ बाकी की कहानी, कभी बाद में. ये rant अच्छा लगा तो शेयर जरूर कीजियेगा.



No comments:

Post a Comment