5 जुलाई आगयी थी .राँझना जैसी सराहनिए फिल्म देखने के बाद हमने मूड बना लिया था लूटेरा देखने का . options और भी थे lone ranger के रूप में ,लेकिन हम ठहरे हिंदी फिल्मी कीड़ा . अब हम आये हुए थे अपने घर मेरठ ,जी हाँ वही शहर ,जिसके यात्रा की कहानी आपने पिछले हफ्ते सुनी थी .first day first show का टिकेट लेने हम आगे बढ़े माल की तरफ ,अब फर्स्ट डे फर्स्ट शो महंगाई से लड़ने के हिसाब से देखा जा रहा है ,ये आप समझ ही सकते हैं ,कोई सरकार ने सब्सिडी तो दी नहीं .सामने देखा बेंताहा भीड़ टिकटघर पे .लोग indian railways की जनरल बोगी की माफिक लदे जा रहे थे .पास जाकर पता चला की इतनी भीड़ policegiri के लिए थी .बात भी सही है ,लूटेरा जैसी State -of the -आर्ट , critically acclaimed फिल्म के लिए थोड़े न आएगी .चेकिंग कराकर हमें सिनेमा हॉल में पहला शो के लिए घुसने का एहसास इस तरह आ रहा था जैसे हॉल से निकलकर हमारा रिव्यु ही छापेगा सारे अखबारों में,न्यूज़ चैनल में .
दिल्ली, पुणे में हॉल के अन्दर एंट्री से पहले crowd चेक होता था, लेकिन यहाँ ऐसा करना बेईमानी लग रहा था .ख़ैर ,D-10 ढून्दी, हॉल में बैठे ही थे की महक आनी शुरू हो गयी , चैनी खैनी की थी या दिलबाग की ,जो भी था ,जला दिया था हमारे nose hair को .बत्तियां बंद हुई ही थी की AC का आनंद लेने वाले fan ने आवाज़ लगाईं : "रे भाई AC तो चला दे " , चलो ये रस्म अदाएगी भी हुई और "मनुष्य के स्पंज सामान फेफड़े " के साथ Late मुकेश हराने आ गया था लोगो को आगाह करने धुम्रपान से.
फिल्म शुरू हुई और हम डूबते चले गए विक्रम मोत्वाने की उस प्यार भरी पेंटिंग में .ये वही निर्देशक थे जिहोने Udaan से आसमान को छुआ था , उसकी कविता हमे अज भी याद थी .बेहद धीमी गति से बढती हुई फिल्म शायद हमारे पड़ोसियों को पसंद नहीं आरही थी ,इसलिए कई बार उन्होंने डायरेक्टर के सगे संबंधियों को याद किया और शत्रुघ्न सिन्हा को भी हिचकी दिलवाई लेकिन जिस एहसास से हम रूबरू हुए , नहा गए थे प्यार से ,ये कर्णप्रिय संगीत का कमाल था जिसने हमे जकड़ लिया था .फिल्म ख़तम होने ही वाली थी की आगे की ओर शुरू हो गई थी हाथापाई ,अब हमारा शहर वास्सेय्पुर से कम थोड़े ही है ,सगे संबंधियों को फिर से याद किया गया और हॉल से बाहर मिलने को कहा गया ,कुछ IPHONE3 से नंबर भी मिलाये गए ,लेकिन जब तक ये मामला सुलझता ,स्क्रीन पर credits ,थैंक्स वाली पट्टी शुरू हो चुकी थी .
एक अजनबी से climax पूछने के बाद
झुंझलाते हुए बहर निकले ही थे की हमें moral of the story मिल गया ,रिक्शा के पीछे लिखा हुआ :
नीम का पेड़ चन्दन से कम नहीं ,
हमारा मेरठ लन्दन से कम नहीं
इतने प्यारभरे माहौल में हमने फिलम निपटाई , कम साहसिक काम था ? लेकिन हमने कान पकड़ लिए, आगे से crowd का ख़याल रखकर ही जायेंगे .
crowd matters !
rant अच्छा लगा तो शेयर ज़रूर करें !
दिल्ली, पुणे में हॉल के अन्दर एंट्री से पहले crowd चेक होता था, लेकिन यहाँ ऐसा करना बेईमानी लग रहा था .ख़ैर ,D-10 ढून्दी, हॉल में बैठे ही थे की महक आनी शुरू हो गयी , चैनी खैनी की थी या दिलबाग की ,जो भी था ,जला दिया था हमारे nose hair को .बत्तियां बंद हुई ही थी की AC का आनंद लेने वाले fan ने आवाज़ लगाईं : "रे भाई AC तो चला दे " , चलो ये रस्म अदाएगी भी हुई और "मनुष्य के स्पंज सामान फेफड़े " के साथ Late मुकेश हराने आ गया था लोगो को आगाह करने धुम्रपान से.
फिल्म शुरू हुई और हम डूबते चले गए विक्रम मोत्वाने की उस प्यार भरी पेंटिंग में .ये वही निर्देशक थे जिहोने Udaan से आसमान को छुआ था , उसकी कविता हमे अज भी याद थी .बेहद धीमी गति से बढती हुई फिल्म शायद हमारे पड़ोसियों को पसंद नहीं आरही थी ,इसलिए कई बार उन्होंने डायरेक्टर के सगे संबंधियों को याद किया और शत्रुघ्न सिन्हा को भी हिचकी दिलवाई लेकिन जिस एहसास से हम रूबरू हुए , नहा गए थे प्यार से ,ये कर्णप्रिय संगीत का कमाल था जिसने हमे जकड़ लिया था .फिल्म ख़तम होने ही वाली थी की आगे की ओर शुरू हो गई थी हाथापाई ,अब हमारा शहर वास्सेय्पुर से कम थोड़े ही है ,सगे संबंधियों को फिर से याद किया गया और हॉल से बाहर मिलने को कहा गया ,कुछ IPHONE3 से नंबर भी मिलाये गए ,लेकिन जब तक ये मामला सुलझता ,स्क्रीन पर credits ,थैंक्स वाली पट्टी शुरू हो चुकी थी .
एक अजनबी से climax पूछने के बाद
झुंझलाते हुए बहर निकले ही थे की हमें moral of the story मिल गया ,रिक्शा के पीछे लिखा हुआ :
नीम का पेड़ चन्दन से कम नहीं ,
हमारा मेरठ लन्दन से कम नहीं
इतने प्यारभरे माहौल में हमने फिलम निपटाई , कम साहसिक काम था ? लेकिन हमने कान पकड़ लिए, आगे से crowd का ख़याल रखकर ही जायेंगे .
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