Wednesday, November 6, 2013

Very short story : schedule caste(सच्ची घटना)


कुछ रोज़ पहले बस में सफ़र कर रहा था, पास में ही बैठे एक सज्जन ने मुझसे मेरा नाम पुछा, नाम बताने पे वो पूछने लगे विश्नोई कौन होते हैं ?
मैंने कहा : साहब पता नहीं.
सज्जन : अरे बेटा, ऐसे कैसा हो सकता है? कुछ तो होंगे? मम्मी पापा क्या है? उन्होंने बताया तो होगा कि क्या गोत्र है वगैरह?
सागर : अंकल ना ही मैंने पुछा, न ही घर वालो ने बताया. चाहें तो हरिजन समझके मुझे मेरी सीट से हटा दें या ब्राह्मण समझ के अपनी भी सीट देंदें. Wikipedia में पढ़ा था की सारी जातियों को जोड़कर बनायी गयी है और पर्यावरण रक्षा के लिए भी.
सज्जन ठहरे Internet savvy, vodafone ad के बूढ़े अंकल की माफिक, उन्होंने तुरंत google किया
और कहा : ह्म्म्मम्म....लेकिन वैसे बेटा कुछ तो होगा, तुम्हारा मतलब .....
सागर(झुंझलाते हुए) : माफ़ कर दो अंकल, मेरा नाम इखिलेश कुमार है, sc हूँ, मस्ती ले रहा था आपसे..... इतना कहा ही था की अंकल ने लम्बी कूद मारी अगली सीट पे और बैठ गए बड़बड़ाटे हुए. मुह पे ताले लग गए थे या होठ पे छाले पता नहीं लेकिन मुझे यकीन हो गया की हम शारीरिक तौर पे मंगल जरूर पहुँच जायेंगे लेकिन मानसिक और सामाजिक रूप से अभी भी हम वाकई एक अद्रश्य राकेट पे बैठे हुए हैं.

Wednesday, October 23, 2013

A short story : भीष्म प्रतिज्ञा


NIT वारांगल जैसे प्रख्यात कॉलेज से पास हुआ था राजेश . चाहता तो नौकरी कर सकता था. इंजीनियरिंग के बाद 8 lpa का पैकेज कम होता है क्या? लेकिन उसे e-commerce का बाज़ार बहुत बड़ा लग रहा था. विज़िटिंग कार्ड्स छपवा लिए थे, shopping site भी शुरू हो गयी हती और 3 लोगो की टीम भी बन गयी थी. कुछ कारणों से राजेश दो दिन के लिए घर आया हुआ था. अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिला ही था पिछले एक दिन में, जब खुद को entrepreneur बताने की कोशिश की, और ये जवाब मिले :
१. पढ़ाई छोड़ आये क्या? या मन नहीं लगता पढ़ाई में?
२. MBA कर लो या थोडा experience लेलो , अभी से कहाँ 
३. तो दूकान है किस चीज़ की ?
४. तुम्हारे पिताजी की दूकान थोड़े ही है,सरकारी नौकरी में हैं वो तो शायद ,हैना ?


खिसियाया हुआ राजेश ऐसी बातें सुनकर झुंझला जाता है और कहता है " अलग करना है, कुछ बड़ा, समझे?"
पिछले 12 महीने से वो कॉलेज के बी-प्लान प्रतियोगिता में जीते हुए 2 लाख रुपये से काम चला रहा था. आखिर घर वालों से आगे कभी भी पैसे न मांगने की भीष्म प्रतिज्ञा जो कर ली थी. हॉस्टल लाइफ ख़तम हो गयी थी, नए मकान का खर्च 10 हज़ार था, बंगलुरु शहर में रहने खाने का खर्च. उनकी शौपिंग साईट शुरू भी हो गयी थी लेकिन फ़ायदा के नाम पे 5-7 हज़ार ही आ रहे थे......
वही हुआ जिसका डर था, जीते हुए पैसे ख़तम हो गए थे और अब अकाउंट में business के आ रहे पैसे ही बाकी थे. एक माध्यम वर्गीय नौकरी पेशेवर का बेटा, चाहे कितना ही निर्भीक हो, खुद को स्टीव जॉब्स समझने या उसकी तरह दुनिया बदलने के सपने देखने वाला हो, लेकिन ऐसी भीष्म प्रतिज्ञा लेने पे, उसे इस तरह का भय, डरा................................. बहुत ज्यादा डरा सकता है. खासकर तब,जब राजेश के अकाउंट में 5 हज़ार हों और 2 महीने पहले शुरू हुआ business आगे कितना पैसा देगा, का कुछ पता न हो और शोभन सरकार के सपने से बड़ी ego हो  .परेशां राजेश अपनी girlfriend से कुछ पैसे उधार लेने को फोन कर ही रहा होता है तभी उसके फोन पे papa calling लिखा आता है. शुरूआती हाँ, हूँ के बाद जब पापा पूछते हैं " बेटा पैसे वैसे तो हैं न अकाउंट में ?,न हों तो डलवा दूंगा "
राजेश हलके स्वर में "हाँ , पापा हैं,और साईट पे orders भी आ रहे हैं, अब कॉलेज के दिन नहीं रहे " कहता है, माथे पे पसीने लिए.
पापा: " चलो तुम कहते हो तो ठीक है, ख्याल रखना अपना " कहते हुए फोन रखते हैं.
राजेश जैसे ही फोन कट करता है उसे बैंक का message दीखता है " Your account has been credited by 30,000 from account no. xxxx xxxx xx45 LM icici "
राजेश तुरंत पापा को फोन मिलाता है "पापा आपने पैसे...???"
पापा : बेटा, कल करवाए थे , मना मत करना , वक़्त बेवक्त कब काम आजायें ,पता नहीं चलता , ठीक है? ख्याल रख.

राजेश फोन रखता है और ego भी,रोते हुए मुस्कुराता है और लग जाता है अपनी इंटरप्रेन्योरशिप को बड़ा बनाने में, नए हौंसले के साथ 

Saturday, October 19, 2013

A Short story/review: शाहिद

बहुत कम ही ऐसे मौके होते हैं की फिल्म देखने जाएँ और मूवी हॉल में गिनती के 10 लोग हों. या तो फिल्म किसी नए नवेले की है या साथ में कोई बड़ी फिल्म लग रही है. ऐसा ही कुछ हुआ जब शाहिद देखने गए. बॉस जैसी intellectual फिल्म पहले ही देख चुके थे. चलो ऊपर की टिकेट मिल गयीं थीं लेकिन क्या पता था की जैसे ही हॉल में घुसेंगे, झाड़ू मरने वाली कहेगी " दो ही लोग फिलम देखने आये हैं ?" ख़ैर हम दोनों बेशर्मों ने देखा की कोई नहीं है हॉल में ,गए वापिस टिकेट काउंटर पे और अपनी पैसे वापिस लेली. हम कुछ बेवकूफ लोगों की वजह से शो थोड़े ही चलता..!हॉल मैनेजमन्ट भी INDIAN है भाई.
बाहर निकले और हमारा दोस्त एक और दोस्त को लेने चला गया, हम मॉल में रहे और बेंच पे बैठे ही थे की एक लड़का हमारे पास आकर बैठ गया. बातूनी ठहरे हम , शुरू हो गयी गुफ्तगू. अपनी कहानी सुनाने लग गया वो. उसने अपने जेल जाने , जेल से निकलने सब की कहानी सुनाई . जितनी सच्चाई उसकी आँखों में थी, उतनी ही ज़िद और द्रढ़ता उसकी कहानी में. मुझे लग रहा था जैसे मैं खौफ, डर, सच्चाई , हिम्मत, उम्मीद से सजे किसी झूले में हिंडोले खा रहा हूँ. किस तरह उसने 17 बेगुनाहों को बचाया वो काबिलेतारीफ था, वहीँ एक आम आदमी होकर भी व्यवस्था पे उसका भरोसा और उसका कहना की "देर लगती है ,लेकिन काम हो जाता है " ने मुझे विवश कर दिया था नंबर लेने को उसका .आज के जमाने में इतना हिम्मती इंसान कौन हो सकता है जो ये कहे की " की किसी इंसान का नाम नाम फहीम है ,ये काफी है उसके पकडे जाने के लिए ?" ................वकील था पेशे से लेकिन नाम नहीं बताया उसने,बस ये बोल के चला गया "जो फिल्म आपने छोड़ी है ज़रूर देखना,लोग आयेंगे देखने ,भीड़ बढ़ेगी ,देर लगेगी लेकिन कुछ तो चलेगी ".......


उस इंसान की शक्ल राजकुमार यादव से मिल रही थी,ना ...ये यादव मुलायम यादव का कोई रिश्तेदार नहीं, रागिनी MMS,कई पो छे जैसी फिल्मों में हीरो रह चूका है.शक्ल से आम आदमी लगता है और हीरो भी.क्यूँ ,आखिर आम आदमी ही तो हीरो ही होता है ? जितने कमाल से हिंदी सिनेमा के इस नई उम्मीद(शाहिद कपूर से कई गुना बेहतर) ने शाहिद आज़मी के प्यार,दर,निर्भयता जैसे भाव को अपने चहरे पे जीया है,.....ताली बजाने लायक था . लेखक की सधी हुई कहानी, निर्देशक की SUBJECT पे पकड़ ने इसे बेहतरीन फिल्म बना दिया. मोहम्मद जीशान(राँझना के मुरारी) भी हैं, और वो भी बड़े भाई के किरदार में जमें हैं. तिग्मांशु धुलिया (रामधीर ऑफ़ GOW) का किरदार आते ही विवश कर देता है सीटी बजाने को. और कलाकारों का भी अभिनय अच्छा है और संगीत के नाम पे एक ही गाना है. शाहिद हमारी न्यायिक प्रणाली का एक आइना दिखाता है, ये आइना हमने कई बार देखा है दामिनी, JOLLY LLB वगरह कई फिल्मों में लेकिन यहाँ एक ख़ास मुद्दे पर " उसका बेगुनाह आतंकवादियों के लिए खड़ा होना "......जू अपने आप में बड़ा controversial है.
वैसे अगर धीमी फिल्मे पसंद नहीं तो avoid करें, वर्ना साल की इस बेहतरीन जाबांज़ सिनेमा को MISS करना गुनाह होगा. कम लोग होंगे हॉल में, लेकिन शाहिद से मिलिएगा ज़रूर. MUST WATCH!

Saturday, October 12, 2013

A short story : तूफ़ान

सन्डे को रात के 10 :30 बज रहे थे. टी.वी पे comedy nights with kapil चल रहा था लेकिन कमरा खाली था. तभी शानो(20) चीखते,भागती हुई बोली, छोटट्टू दरवाज़ा बांद कर ले, मैं स्कूटी ले के जा रही हूँ....और हाँ दूध गर्म कर लियो, मम्मी जी और ताया जी के लिए. शानो ने स्कूटी उठाई और निकल पड़ी अस्पताल. निकल तो पड़ी लेकिन रास्ते में याद आया की अस्पताल कौन से जाना है? shanty को whatsapp किया ....कहाँ?...shanty(19) का कोई रिप्लाई नहीं, इतनी देर में मम्मी जी का फोन आगया, सुन शानो ,Tgi आजा. शानो अस्पताल पहुंची. देखा तो मम्मी के माथे पे पसीने थे,परेशां थीं, ताया जी पूछ रहे थे डॉक्टर से” ओ यार ,इतनी ऊपर कैसे आगयी ??” पापाजी को डॉक्टर दवाई दे रहे थे और पानी पिला रहे थे और पापाजी, जोर जोर से सांस ले रहे थे, दर्द से कराहते हुए. उनसे उठा नहीं जा रहा था, और डॉक्टर दवाई के लिए बार बार उठा रहा था और ये देख देख के मम्मी जी बिना दर्द हुए चिल्ला रही थी” क्या स्यापा हो गया ,हाय रब्बा “. ये था adlakkhha परिवार.
1 दिन पहले
पापाजी शर्मा जी के यहाँ रिसेप्शन में गए थे, रात को अच्छे से खाना पेलने के बाद कह के सोये थे, शानो की मम्मी.... चिकन लोल्लिपोप का स्वाद ही अलग था आज,....वाहेगुरु ...आह(हवा निकालते हुए ) !!!
सुबह हुई, तो पापाजी डकार मारते हुए उठे,....ओए शानो की मम्मी ,बड़ी एसिडिटी सी लग रही है ....सौंफ या कोई दवाई ले आ. शानो ने सौंफ दी और पापाजी fresh होने चले गए. fresh होकर निकले तो बोले: लगता है कब्ज हो गया है,पता नि कक्या बसूड़ी है.....ओ बांदकर टी.वी सुबह से खोल के बैठ गया बे*** shanty. पापाजी आकर बेड पे लेट गए. इतने में मम्मी जी बाहर से आती हुई बोली, गुप्ता जी की मिसेज़ से पूछ के आ रही हूँ, कह रही थी, दूध से मनक्का लेलो, पेट में wiper चल जायेगा, जिसे सुनके पापाजी बोले : ओह गुप्तानी कोई डॉक्टर सिगी?? मनक्का लेलो...ऐत्थे बवाल मचा हुआ पेट में, तू अलग wiper....(डकार लेते हुए)..हाय वाहेगुरु.
पापा जी ने दूध लिया और एक बार फिर fresh होने चले गए. बाहर निकले तो shanty चुटकी लेते हुए बोला : flush तो चला दो,
पापाजी : ओए कमीने चला तो दिया,
shanty: दवाई लेने जा रहा हूँ, चिकेन लोल्लिओपोप ले आऊँ? पापाजी चप्पल निकालते हुए, इधर रुक कम्मीने, और shanty तेंदुए की तरह दौड़ा.
 ताया जी ने हाल पूछते हुए डॉक्टर पे ले जाने की बात कही, तो पापाजी ने “ अभी ENO लेके ठीक हो जाना है” कहते हुए टाल दिया.
पापाजी बेड पे लेटे हुए बोले, ओए शानो, ओए टी. वी चला दे कम से कम. टी.वी पे न्यूज़ लगाईं तो वो कुछ इस तरह से थीं: तूफ़ान कभी भी आ सकता है, दुसरे चैनल पे : ये है दशक का सबसे बड़ा तूफ़ान जिसने मचा दी है खलबली ....तभी पापाजी के हाथ से रिमोट छूटा, ओए शानो की मम्मी ओए(दर्द में )....ओए यहाँ पेट के अन्दर चारो तरफ कुछ घूम रहा है.
थोड़ी सेर बाद shanty दवाई लेके घर में घुसता है,यहाँ मम्मीजी पापा को पानी पिला रही हैं और फोन अटेंड कर रही हैं ,जिसपे रिश्तेदार उन्हें त्रिफला और पता नहीं कौन कौन से चूरन बता रहे हैं, शानो और ताया जी पापाजी को घेरे हुए हैं,
shanty: मम्मी जी तूफ़ान आ रहा है ओडिस्सा में,
मम्मी जी: ओए वो किधर है? यहाँ तेरे पापा के पेट नु तूफ़ान आरहा है,तू ......,
शानो: shanty फुददुपंती न कर,..
shanty: अच्छा ठीक है ना, लो ENO, GASGO दोनों लेलो, सारा तूफ़ान निकल जायेगा .....या मम्मी जी........कहो तो वो जो बस में स्टीकर चिपके रहते हैं,गैस , कब्ज और बवासीर ,उनका नंबर मिलाऊं ???   
इससे पहले पापाजी BC,MC कहते shanty को उनके पेट में हलचल और बढती है,....
पापाजी: ओए, ओए, अब सेहन नहीं हो रहा,..... कुछ घूम रहा है अन्दर, ओए अब उठा भी नहीं जा रहा, बलवीर गड्डी निकाल....ओएएए, निकाल गड्डीइइइ(चीखते हुए)
ताया जी, मम्मी और shanty को लेकर हॉस्पिटल निकलते हैं. कार में shanty Whatsapp पे किसी को लिख रहा है : हमारे डैडी जी delivery कराने जा रहे हैं.:P
 डॉक्टर बताता है ज्यादा तला भुना और कम पानी लेने से बनी गैस उनके पेट में घूम रही है और  चेस्ट में अटक गयी है. तभी शानो आती है.
 डॉक्टर पापाजी को दवाई और पानी देकर हवा निकलवा रहे हैं.पापाजी: ओए सुबह से कभी मुह से ,कभी पीछे (एक और )... येही निकाल रहा हूँ.
 काफी देर तक उब्काइयां और हवा पास होने के बाद, पापाजी अब लेटे हुए हैं हॉस्पिटल के बेड पे. तभी सब लोग रूम में  करते हैं... और shanty पूछता है , पापाजी तूफ़ान शांत? सब सेट? घर चलें?
पापाजी: ओए रुक जा थोड़ी देर, 
shanty कहता है “ हाँ , इक दो सिलिंडर और भर दो “
तभी पापाजी एक दम से उठके चप्पल निकालते हैं, और दौड़ पड़ते हैं shanty के पीछे.
 सब खड़े हस रहे हैं. मम्मी जी ताया जी से कहती हैं .....आपके पीछे दो बार और आ चुके हैं यहाँ ,सिलिंडर भरने ............अब गैस है, पता नही कब ,कैसे, किसे आजाये ..... J


Wednesday, October 9, 2013

A SHORT STORY :बुढाऊ


"अब आंटी जी आप सब्जी बनाती ही इतनी अच्छी हैं क्या कहूँ " मस्का मारते हुए मुन्नू मियां अपने पडोसी शर्मा जी के यहाँ बैठे हुए दावत का मज़ा ले रहे थे. अब ऐसा इंसान जो पूरे दिन facebook, whatsapp पे लगा रहता हो ,जैसे दोनों co. उन्ही की हैं, वो काम क्या करेगा? बात बनाने में, गोली देने में उस्ताद मुन्नू दावत के बाद अब खिसकने के लिए तैयार थे, तभी शर्मा आंटी ने कहा " मुन्नू कल हमे शादी में जाना है उन्नाव , तू यहीं रुक जाना ,खाना बना जाउंगी तेरा और हाँ ,दादाजी को दवाई भी दे देना "
मुन्नू : अमा यार लेकिन वो बुढाऊ... खीजते हुए मुन्नू ने हामी भर दी. करते भी क्या, शायद सब्जी की तारीफ करने का हर्जाना दे रहे थे .

अगले दिन मुन्नू तैयार होकर पहुँच गए शर्मा आंटी के. पूरे दिन उन्हें तफ्रिबाज दोस्तों के साथ बिना बिताना था. शुरू में मुन्नू अखबार में फिल्मी कलियाँ पढ़ते रहे,भई अब वो भी हमारे देश के नौजवान हैं, समस्याओं से ज्यादा उन्हें सचिन के 50,००० run और ग्रैंड मस्ती ने कमाए 100 करोड़ जैसी ख़बरें पढना पसंद हैं."कुछ नहीं है आज खबर इसमें " यह कह के वो कुछ पेट पूजा करने बढे,तभी दादाजी की आवाज़ आई "अरे मुन्नू बेटा दवाई कुछ खाने को देना". मुन्नू ने सोचा " लो शहर बसा नहीं , लूटेरे पहले आगये ".ख़ैर, मुन्नू ने उन्हें नाश्ता दिया और दवाई भी. अब मुन्नू ने टीवी खोल के मोदी की स्पीच , आसाराम की करतूत की NEWS भी 2 घंटे देख ली. बैचेन मन आखिर कब तक घर में रहे, मुन्नू ने दोपहर को अल्ताफ को फोन किया और उससे मिलने बाहर अगया.


एक घंटा हुआ था बतोले मारते हुए तभी घर के अन्दर से आवाज़ें आई. मुन्नू अन्दर की तरफ दौड़ा. देखा तो दादाजी की सफ़ेद लाठी ज़मीन पे थी. दादाजी को मुन्नू ने उठाया. उनकी पीठ पे हाथ लगा तो मुन्नू को फफोले का एहसास हुआ. उनको उठा के बेड पे रखा, तो मुन्नू ने देखा की उसका हाथ हल्का सा गीला है.हाथ धोकर वो दादाजी के पास बैठा और बोला " का ज़रुरत थी उठने की बुढाऊ,कुछ चाहिए था ,हमें आवाज़ देते" दादाजी थोड़ी देर चुप रहे और फिर चुप्पी तोड़ते हुए बोले "सोचा तुझे खाना देदूं, दिन भर यहाँ पड़ा रहता हूँ ,खाना ,पीना,निकालना सब यहीं बेड पे,बस हर दिन 9 बजे ,2 बजे दवाई मिल जाती है,कोई बात करने को भी नहीं ऊपर से सब बुढाऊ कहते .......ये कहते हुए वो हो रुआंसे हो गये. मुन्नू भी ये सब देख के जज्बाती हो गया और बोला अरे बु ...वो दादाजी,.......................................अमां चलो ,सुनाओ कुछ दादी का यार ,तुम बेवजह आंसू बहा रहे हो, दादी भी रोएगी ऊपर से, लो बदल आ गए बहार, आज तो मौसम रंगीन हो गया दोनों का ...यीईईई ..........ये कह के दोनों हस पड़े.

दादाजी को bedsores थे,और वो मरने के लिए जी रहे थे या जीते हुए मर रहे थे, वो उनकी समझ थी. लेकिन हाँ, बुढापे की दर्दनाक सच्चाई शायद उनके साथ थी.

Sunday, September 22, 2013

Open letter to Mulayam Yadav by another Yadav

मुलायम जी ,
आपके क्या कहने, कुछ दिनों पहले मेरी बेटी को लैपटॉप मिला, वही जो आपके बेटे ,प्रदेश के मुख्यमंत्री ने वादा किया था. बेटी ख़ुशी से फूली नहीं समाई. हमने उसपे इन्टरनेट भी लगवा लिया और अब फेसबुक ,गूगल भी करते हैं.ज़िन्दगी आसान हो गई है,क्लिक करते ही सारी दुनिया घर पे.
 लेकिन महामहीम ,मेरे सूबे में केवल 8 घंटे लाइट आती है,लेकिन वो चार्जिंग के लिए बहुत है ,अब अँधेरे में जुर्म हो,चोरी हो क्या फर्क पड़ता है .घर की बेटी पर मनचले फब्तियां कसे, प्रदेश में आपके राज के एक साल में 100 से ज्यादा रेप मामले,लेकिन क्या फर्क पड़ता है. वैसे भी हमारे पडोसी आपके चुनावी जुमले का मज़ाक बनाते रहते हैं ……यूपी में नहीं है दम, यहाँ दंगे है , जुर्म नहीं हुआ कम .
महामहीम ,आपने बारहवी पास लड़कियों को छात्रवृत्तियां बांटी ,ख़ुशी हुई,लेकिन मेरी लड़की के पास रोजगार नहीं है, होता भी कैसे आपके सुपुत्र ने कौशल निखारने के लिए प्रशिक्षण केंद्र थोड़े ही खुलवाये हैं.गरीब को रोजगार देंगे तो पैसे कमा के वो खुद खायेंगे,गरीब को रोटी देंगे तो वो गरीब ही रहेगा .लेकिन साहब चुनाव रहे हैं प्रदेश का युवा सब देख रहा है, उसी लैपटॉप पे .
पार्टी का नारा है समाजवाद का ,लेकिन महामहीम आपके सुपुत्र के राज में प्रदेश में 18 महीने मेंसे ज्यादा दंगे हुए, मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगो को आपने अधिकारियों की नाकामी और राजनितिक षड़यंत्र का जमा पहना दिया.600 से अधिक लोग मारे गए और 40 ,000 से ज्यादा बेघर हुए लेकिन आपने सरकारी आंकड़ा गलत दर्शाया और अभी भी सुध ली है ,पता नहीं इसका. अधिकारी वहां चुपचाप रहते हुए सब देखते रहे और अगर कोई अधिकारी खनन माफिया के खिलाफ इमानदारी का साथ दे तो उसका तबादला आधे घंटे में होता है,वाह सरकार ! आपका कथन की अखिलेश को प्रदेश में और समझदारी से काम करने की ज़रुरत है और आपके ख़ास आज़म खान का स्टिंग ऑपरेशन के विडियो भी हमने लैपटॉप पर ही देखे.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, लेकिन हमारी बेटी सब देख रही है,19  साल की हो गई है , वोट करेगी अगले साल और आपको सलाह देता हूँ की अपना स्लोगन रख लें ….
तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे लैपटॉप दूंगा

प्रदेश का एक जागरूक नागरिक
........... यादव (आप की ही जाती का)


published on www.youthkiawaaz.com/topic/sagarvishnoi

Friday, September 20, 2013

LUNCHBOX: a SHORT STORY/REVIEW

भले ही नाश्ते में आलू -प्याज-गोभी के परांठे पसंद हो ,लेकिन लंच में अगर खाना मिले तो बात नहीं बनती. अरे .., फल-सब्जी या GM डाइट से पेट थोड़े ही भरता है.आज ऐसे ही कुछ अलग तरीके का खाना चखा.वैसे लंच अकेले ही होता है ,लेकिन आज का स्वाद कभी भूलने वाला था .

चार डिब्बे थे, लेकिन शुरू करते हैं पहले डिब्बे से, दाल थी कोई, कहीं कहीं इन्हें इर्र्फान खान नाम से चखा हैं ,लेकिन इतनी अच्छी तरह नहीं, वैसे तो ये शहरी और कस्बों, दोनों तरह के लोगों को ही पसंद आती है ,लेकिन शायद जो उनका अभिनय का तड़का है, बाकी सभी कलाकारों से एक कड़ी आगे. चाहे संवाद अदाएगी का पक्कापन हो या सीधे मुह से हँसाना,सभी स्वादानुसार.
दूसरा डिब्बा था सिमरत कौर(जी हाँ वही लड़की जो कैडबरी सिल्क के AD में कार में बैठी चॉकलेट खा रही है), सब्जी जितनी देखने में आकर्षक थी उतनी ही स्वाद में ,क्या अदाएगी की है.ऐसे चरित्र आज के शहरी जीवन में सामान्य हैं लेकिन सिमरत ने असामान्य जिया इसे .

तीसरे डिब्बे में कहानी,डायरेक्शन नामक रोटी थी,एकदम गोल ,परफेक्शन के घी से चुपड़ी हुई और एक पतली प्लास्टिक की पैकेट में नव्ज़ुद्दीन नुमा अचार.कहते हैं खाने में देसीपन का स्वाद अचार ही लाता है,नवाज़ुद्दीन का पेशेवराना अंदाज़ दिखता है और पूरी कहानी को चाटाकेदार भी बनाता है (की कहीं भी नमक कम लगे ,स्वाद लेने के लिए अचार लीजिये )
आखिरी डिब्बे में एक अनाम चीज़ भी थी ,उसका अंत, जिसे अगर आप खुद चखकर देखेंगे तो मज़ा आएगा .

कभी कभी लगता है की शहरों में हम अकेले हैं ,बस उसी अकेलेपन में प्यार की भूख की कहानी है ये. डिब्बावाला की छोटी सी कहानी हो,संवाद या निर्देशन, फिल्म जितना हँसाती है उतना ही आप से भावनात्मक रूप से जुड़ती है.चाहे वो हमारा सन्डे को लैपटॉप की मूवीज देखते हुए बोरियत हो, ट्रेन या बस में किसी अनजान से बातचीत शुरू करना या अपना whatsapp, फेसबुक चेक करते रहना ,बोर होते हुए फेसबुक चाट पे पुराने दोस्त या अनजान दोस्त को Hi,wassup ? या कैसा है लिखना हो,शहरी जीवन में हम मौके तलाश रहे हैं, अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए,कुछ टाइमपास करने और कुछ नए रिश्ते बनाने के लिए. कभी अकेले ऑफिस या कॉलेज में अकेले खाना खाना पड़ जाये, कैसा लगता है ?और अगर आप घर से दूर हैं तो अपनी माँ से पूछे एक बार,वो फीकापन. वहीँ अगर एक परिवार, साथी मिल जाये खाने के साथ या साथ देने को ,तो भाव अपने आप ही निकलते हैं खाने की टेबल पे ........हैना? ख़ैर ये lunchbox बहुत ख़ास लगा ,ऑस्कर मिलेगा ,पता नहीं ,लेकिन आप चाखियेगा ज़रूर.zomato से रिव्यु लेने की ज़रुरत नही,.अब तो करन जौहर ने भी पैसे लगा दिए हैं. वैसे,जो तेज़ गति से खाते हैं ,वो बचें ,इसे आराम से चखिए. :)