"अब आंटी जी आप सब्जी बनाती ही इतनी अच्छी हैं क्या कहूँ " मस्का मारते हुए मुन्नू मियां अपने पडोसी शर्मा जी के यहाँ बैठे हुए दावत का मज़ा ले रहे थे. अब ऐसा इंसान जो पूरे दिन facebook, whatsapp पे लगा रहता हो ,जैसे दोनों co. उन्ही की हैं, वो काम क्या करेगा? बात बनाने में, गोली देने में उस्ताद मुन्नू दावत के बाद अब खिसकने के लिए तैयार थे, तभी शर्मा आंटी ने कहा " मुन्नू कल हमे शादी में जाना है उन्नाव , तू यहीं रुक जाना ,खाना बना जाउंगी तेरा और हाँ ,दादाजी को दवाई भी दे देना "
मुन्नू : अमा यार लेकिन वो बुढाऊ... खीजते हुए मुन्नू ने हामी भर दी. करते भी क्या, शायद सब्जी की तारीफ करने का हर्जाना दे रहे थे .
अगले दिन मुन्नू तैयार होकर पहुँच गए शर्मा आंटी के. पूरे दिन उन्हें तफ्रिबाज दोस्तों के साथ बिना बिताना था. शुरू में मुन्नू अखबार में फिल्मी कलियाँ पढ़ते रहे,भई अब वो भी हमारे देश के नौजवान हैं, समस्याओं से ज्यादा उन्हें सचिन के 50,००० run और ग्रैंड मस्ती ने कमाए 100 करोड़ जैसी ख़बरें पढना पसंद हैं."कुछ नहीं है आज खबर इसमें " यह कह के वो कुछ पेट पूजा करने बढे,तभी दादाजी की आवाज़ आई "अरे मुन्नू बेटा दवाई कुछ खाने को देना". मुन्नू ने सोचा " लो शहर बसा नहीं , लूटेरे पहले आगये ".ख़ैर, मुन्नू ने उन्हें नाश्ता दिया और दवाई भी. अब मुन्नू ने टीवी खोल के मोदी की स्पीच , आसाराम की करतूत की NEWS भी 2 घंटे देख ली. बैचेन मन आखिर कब तक घर में रहे, मुन्नू ने दोपहर को अल्ताफ को फोन किया और उससे मिलने बाहर अगया.
एक घंटा हुआ था बतोले मारते हुए तभी घर के अन्दर से आवाज़ें आई. मुन्नू अन्दर की तरफ दौड़ा. देखा तो दादाजी की सफ़ेद लाठी ज़मीन पे थी. दादाजी को मुन्नू ने उठाया. उनकी पीठ पे हाथ लगा तो मुन्नू को फफोले का एहसास हुआ. उनको उठा के बेड पे रखा, तो मुन्नू ने देखा की उसका हाथ हल्का सा गीला है.हाथ धोकर वो दादाजी के पास बैठा और बोला " का ज़रुरत थी उठने की बुढाऊ,कुछ चाहिए था ,हमें आवाज़ देते" दादाजी थोड़ी देर चुप रहे और फिर चुप्पी तोड़ते हुए बोले "सोचा तुझे खाना देदूं, दिन भर यहाँ पड़ा रहता हूँ ,खाना ,पीना,निकालना सब यहीं बेड पे,बस हर दिन 9 बजे ,2 बजे दवाई मिल जाती है,कोई बात करने को भी नहीं ऊपर से सब बुढाऊ कहते .......ये कहते हुए वो हो रुआंसे हो गये. मुन्नू भी ये सब देख के जज्बाती हो गया और बोला अरे बु ...वो दादाजी,.......................................अमां चलो ,सुनाओ कुछ दादी का यार ,तुम बेवजह आंसू बहा रहे हो, दादी भी रोएगी ऊपर से, लो बदल आ गए बहार, आज तो मौसम रंगीन हो गया दोनों का ...यीईईई ..........ये कह के दोनों हस पड़े.
दादाजी को bedsores थे,और वो मरने के लिए जी रहे थे या जीते हुए मर रहे थे, वो उनकी समझ थी. लेकिन हाँ, बुढापे की दर्दनाक सच्चाई शायद उनके साथ थी.
OK OK
ReplyDeleteLoved it..:)
ReplyDeleteMany emotional ups & downs in one short story.. you are brilliant :)
ReplyDeleteThanks Anchor Gaurav and Amita! :)
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