भले ही नाश्ते में आलू -प्याज-गोभी के परांठे पसंद हो ,लेकिन लंच में अगर खाना न मिले तो बात नहीं बनती. अरे .., फल-सब्जी या GM डाइट से पेट थोड़े ही भरता है.आज ऐसे ही कुछ अलग तरीके का खाना चखा.वैसे लंच अकेले ही होता है ,लेकिन आज का स्वाद कभी न भूलने वाला था .
चार डिब्बे थे, लेकिन शुरू करते हैं पहले डिब्बे से, दाल थी कोई, कहीं कहीं इन्हें इर्र्फान खान नाम से चखा हैं ,लेकिन इतनी अच्छी तरह नहीं, वैसे तो ये शहरी और कस्बों, दोनों तरह के लोगों को ही पसंद आती है ,लेकिन शायद जो उनका अभिनय का तड़का है, बाकी सभी कलाकारों से एक कड़ी आगे. चाहे संवाद अदाएगी का पक्कापन हो या सीधे मुह से हँसाना,सभी स्वादानुसार.
दूसरा डिब्बा था सिमरत कौर(जी हाँ वही लड़की जो कैडबरी सिल्क के AD में कार में बैठी चॉकलेट खा रही है), सब्जी जितनी देखने में आकर्षक थी उतनी ही स्वाद में ,क्या अदाएगी की है.ऐसे चरित्र आज के शहरी जीवन में सामान्य हैं लेकिन सिमरत ने असामान्य जिया इसे .
तीसरे डिब्बे में कहानी,डायरेक्शन नामक रोटी थी,एकदम गोल ,परफेक्शन के घी से चुपड़ी हुई और एक पतली प्लास्टिक की पैकेट में नव्ज़ुद्दीन नुमा अचार.कहते हैं खाने में देसीपन का स्वाद अचार ही लाता है,नवाज़ुद्दीन का पेशेवराना अंदाज़ दिखता है और पूरी कहानी को चाटाकेदार भी बनाता है (की कहीं भी नमक कम लगे ,स्वाद लेने के लिए अचार लीजिये )
आखिरी डिब्बे में एक अनाम चीज़ भी थी ,उसका अंत, जिसे अगर आप खुद चखकर देखेंगे तो मज़ा आएगा .
चार डिब्बे थे, लेकिन शुरू करते हैं पहले डिब्बे से, दाल थी कोई, कहीं कहीं इन्हें इर्र्फान खान नाम से चखा हैं ,लेकिन इतनी अच्छी तरह नहीं, वैसे तो ये शहरी और कस्बों, दोनों तरह के लोगों को ही पसंद आती है ,लेकिन शायद जो उनका अभिनय का तड़का है, बाकी सभी कलाकारों से एक कड़ी आगे. चाहे संवाद अदाएगी का पक्कापन हो या सीधे मुह से हँसाना,सभी स्वादानुसार.
दूसरा डिब्बा था सिमरत कौर(जी हाँ वही लड़की जो कैडबरी सिल्क के AD में कार में बैठी चॉकलेट खा रही है), सब्जी जितनी देखने में आकर्षक थी उतनी ही स्वाद में ,क्या अदाएगी की है.ऐसे चरित्र आज के शहरी जीवन में सामान्य हैं लेकिन सिमरत ने असामान्य जिया इसे .
तीसरे डिब्बे में कहानी,डायरेक्शन नामक रोटी थी,एकदम गोल ,परफेक्शन के घी से चुपड़ी हुई और एक पतली प्लास्टिक की पैकेट में नव्ज़ुद्दीन नुमा अचार.कहते हैं खाने में देसीपन का स्वाद अचार ही लाता है,नवाज़ुद्दीन का पेशेवराना अंदाज़ दिखता है और पूरी कहानी को चाटाकेदार भी बनाता है (की कहीं भी नमक कम लगे ,स्वाद लेने के लिए अचार लीजिये )
आखिरी डिब्बे में एक अनाम चीज़ भी थी ,उसका अंत, जिसे अगर आप खुद चखकर देखेंगे तो मज़ा आएगा .
कभी कभी लगता है की शहरों में हम अकेले हैं ,बस उसी अकेलेपन में प्यार की भूख की कहानी है ये. डिब्बावाला की छोटी सी कहानी हो,संवाद या निर्देशन, फिल्म जितना हँसाती है उतना ही आप से भावनात्मक रूप से जुड़ती है.चाहे वो हमारा सन्डे को लैपटॉप की मूवीज देखते हुए बोरियत हो, ट्रेन या बस में किसी अनजान से बातचीत शुरू करना या अपना whatsapp, फेसबुक चेक करते रहना ,बोर होते हुए फेसबुक चाट पे पुराने दोस्त या अनजान दोस्त को Hi,wassup ? या कैसा है लिखना हो,शहरी जीवन में हम मौके तलाश रहे हैं, अपने अकेलेपन
को दूर करने के लिए,कुछ टाइमपास करने और कुछ नए रिश्ते बनाने के लिए. कभी अकेले ऑफिस या कॉलेज में अकेले खाना खाना पड़ जाये, कैसा लगता है ?और अगर आप घर से दूर हैं तो अपनी माँ से पूछे एक बार,वो फीकापन.
वहीँ अगर एक परिवार, साथी मिल जाये खाने के साथ या साथ देने को ,तो भाव अपने आप ही निकलते हैं खाने की टेबल पे ........हैना? ख़ैर ये lunchbox बहुत ख़ास लगा ,ऑस्कर मिलेगा ,पता नहीं ,लेकिन आप चाखियेगा ज़रूर.zomato से रिव्यु लेने की ज़रुरत नही,.अब तो करन जौहर ने भी पैसे लगा दिए हैं. वैसे,जो तेज़ गति से खाते हैं ,वो बचें ,इसे आराम से चखिए. :)
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