Friday, September 13, 2013

आस्था या ढोंग ???

दिल्ली में ही बस में जा रहा था ...एक सज्जन से कुछ बातचीत हुई , किसी बापू पे ,तो वो कहने लगे ...
मैं तो बहुत पूजा पाठी हूँ , रोज़ सूर्य को जल चढ़ाता हूँ , माथे पे तिलक लगाता हूँ ,हनुमान चालीसा वगेराह सब जानता हूँ ,facebook पे भी दुर्गा माता की फोटो like करता हूँ , कोई खराब काम नहीं करता ,उस मंदिर के चौराहे पे जो मंदिर बना है उसमें स्वामी जी की मूर्ती लगवायीं अभी पिछले हफ्ते ,हर शनिवार और मंगलवार मंदिर जाता हूँ ,और साल में एक बार वैष्णो देवी , यहाँ तक की ,मैं तो श्री श्री रवि शंकर को फॉलो करता हूँ ....ये बापू वगरह कहाँ ...
थोड़ी बातचीत आगे बढ़ी .....बाकी विषयों पे तो उन्होंने कहा ....
और भाई राजनीती हो या समाज, ये जो एक समुदाय है ना , उन्होंने गंदगी मचा रखी है ....

पास में बैठी उनकी लड़की, जिसकी आँख के पास ताज़ी चोट का निशान था , बोली
और जो आप शराब पीकर मम्मी को मारते हो .......?.....................................

मैं और वो दोनों ही चुप , दोनों की ही चुप्पी में उनकी समझ भी थी ....

धर्म और आस्था शायद इंसान के विश्वास ,विकास के लिए हैं ,
तनाव या ढोंग के लिए नहीं .....वर्ना आसाराम आज़ाद था ही और रहेगा भी ....

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