Sunday, September 22, 2013

Open letter to Mulayam Yadav by another Yadav

मुलायम जी ,
आपके क्या कहने, कुछ दिनों पहले मेरी बेटी को लैपटॉप मिला, वही जो आपके बेटे ,प्रदेश के मुख्यमंत्री ने वादा किया था. बेटी ख़ुशी से फूली नहीं समाई. हमने उसपे इन्टरनेट भी लगवा लिया और अब फेसबुक ,गूगल भी करते हैं.ज़िन्दगी आसान हो गई है,क्लिक करते ही सारी दुनिया घर पे.
 लेकिन महामहीम ,मेरे सूबे में केवल 8 घंटे लाइट आती है,लेकिन वो चार्जिंग के लिए बहुत है ,अब अँधेरे में जुर्म हो,चोरी हो क्या फर्क पड़ता है .घर की बेटी पर मनचले फब्तियां कसे, प्रदेश में आपके राज के एक साल में 100 से ज्यादा रेप मामले,लेकिन क्या फर्क पड़ता है. वैसे भी हमारे पडोसी आपके चुनावी जुमले का मज़ाक बनाते रहते हैं ……यूपी में नहीं है दम, यहाँ दंगे है , जुर्म नहीं हुआ कम .
महामहीम ,आपने बारहवी पास लड़कियों को छात्रवृत्तियां बांटी ,ख़ुशी हुई,लेकिन मेरी लड़की के पास रोजगार नहीं है, होता भी कैसे आपके सुपुत्र ने कौशल निखारने के लिए प्रशिक्षण केंद्र थोड़े ही खुलवाये हैं.गरीब को रोजगार देंगे तो पैसे कमा के वो खुद खायेंगे,गरीब को रोटी देंगे तो वो गरीब ही रहेगा .लेकिन साहब चुनाव रहे हैं प्रदेश का युवा सब देख रहा है, उसी लैपटॉप पे .
पार्टी का नारा है समाजवाद का ,लेकिन महामहीम आपके सुपुत्र के राज में प्रदेश में 18 महीने मेंसे ज्यादा दंगे हुए, मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक दंगो को आपने अधिकारियों की नाकामी और राजनितिक षड़यंत्र का जमा पहना दिया.600 से अधिक लोग मारे गए और 40 ,000 से ज्यादा बेघर हुए लेकिन आपने सरकारी आंकड़ा गलत दर्शाया और अभी भी सुध ली है ,पता नहीं इसका. अधिकारी वहां चुपचाप रहते हुए सब देखते रहे और अगर कोई अधिकारी खनन माफिया के खिलाफ इमानदारी का साथ दे तो उसका तबादला आधे घंटे में होता है,वाह सरकार ! आपका कथन की अखिलेश को प्रदेश में और समझदारी से काम करने की ज़रुरत है और आपके ख़ास आज़म खान का स्टिंग ऑपरेशन के विडियो भी हमने लैपटॉप पर ही देखे.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, लेकिन हमारी बेटी सब देख रही है,19  साल की हो गई है , वोट करेगी अगले साल और आपको सलाह देता हूँ की अपना स्लोगन रख लें ….
तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे लैपटॉप दूंगा

प्रदेश का एक जागरूक नागरिक
........... यादव (आप की ही जाती का)


published on www.youthkiawaaz.com/topic/sagarvishnoi

Friday, September 20, 2013

LUNCHBOX: a SHORT STORY/REVIEW

भले ही नाश्ते में आलू -प्याज-गोभी के परांठे पसंद हो ,लेकिन लंच में अगर खाना मिले तो बात नहीं बनती. अरे .., फल-सब्जी या GM डाइट से पेट थोड़े ही भरता है.आज ऐसे ही कुछ अलग तरीके का खाना चखा.वैसे लंच अकेले ही होता है ,लेकिन आज का स्वाद कभी भूलने वाला था .

चार डिब्बे थे, लेकिन शुरू करते हैं पहले डिब्बे से, दाल थी कोई, कहीं कहीं इन्हें इर्र्फान खान नाम से चखा हैं ,लेकिन इतनी अच्छी तरह नहीं, वैसे तो ये शहरी और कस्बों, दोनों तरह के लोगों को ही पसंद आती है ,लेकिन शायद जो उनका अभिनय का तड़का है, बाकी सभी कलाकारों से एक कड़ी आगे. चाहे संवाद अदाएगी का पक्कापन हो या सीधे मुह से हँसाना,सभी स्वादानुसार.
दूसरा डिब्बा था सिमरत कौर(जी हाँ वही लड़की जो कैडबरी सिल्क के AD में कार में बैठी चॉकलेट खा रही है), सब्जी जितनी देखने में आकर्षक थी उतनी ही स्वाद में ,क्या अदाएगी की है.ऐसे चरित्र आज के शहरी जीवन में सामान्य हैं लेकिन सिमरत ने असामान्य जिया इसे .

तीसरे डिब्बे में कहानी,डायरेक्शन नामक रोटी थी,एकदम गोल ,परफेक्शन के घी से चुपड़ी हुई और एक पतली प्लास्टिक की पैकेट में नव्ज़ुद्दीन नुमा अचार.कहते हैं खाने में देसीपन का स्वाद अचार ही लाता है,नवाज़ुद्दीन का पेशेवराना अंदाज़ दिखता है और पूरी कहानी को चाटाकेदार भी बनाता है (की कहीं भी नमक कम लगे ,स्वाद लेने के लिए अचार लीजिये )
आखिरी डिब्बे में एक अनाम चीज़ भी थी ,उसका अंत, जिसे अगर आप खुद चखकर देखेंगे तो मज़ा आएगा .

कभी कभी लगता है की शहरों में हम अकेले हैं ,बस उसी अकेलेपन में प्यार की भूख की कहानी है ये. डिब्बावाला की छोटी सी कहानी हो,संवाद या निर्देशन, फिल्म जितना हँसाती है उतना ही आप से भावनात्मक रूप से जुड़ती है.चाहे वो हमारा सन्डे को लैपटॉप की मूवीज देखते हुए बोरियत हो, ट्रेन या बस में किसी अनजान से बातचीत शुरू करना या अपना whatsapp, फेसबुक चेक करते रहना ,बोर होते हुए फेसबुक चाट पे पुराने दोस्त या अनजान दोस्त को Hi,wassup ? या कैसा है लिखना हो,शहरी जीवन में हम मौके तलाश रहे हैं, अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए,कुछ टाइमपास करने और कुछ नए रिश्ते बनाने के लिए. कभी अकेले ऑफिस या कॉलेज में अकेले खाना खाना पड़ जाये, कैसा लगता है ?और अगर आप घर से दूर हैं तो अपनी माँ से पूछे एक बार,वो फीकापन. वहीँ अगर एक परिवार, साथी मिल जाये खाने के साथ या साथ देने को ,तो भाव अपने आप ही निकलते हैं खाने की टेबल पे ........हैना? ख़ैर ये lunchbox बहुत ख़ास लगा ,ऑस्कर मिलेगा ,पता नहीं ,लेकिन आप चाखियेगा ज़रूर.zomato से रिव्यु लेने की ज़रुरत नही,.अब तो करन जौहर ने भी पैसे लगा दिए हैं. वैसे,जो तेज़ गति से खाते हैं ,वो बचें ,इसे आराम से चखिए. :)