कुछ रोज़ पहले बस में सफ़र कर रहा था, पास में ही बैठे एक सज्जन ने मुझसे मेरा नाम पुछा, नाम बताने पे वो पूछने लगे विश्नोई कौन होते हैं ?
मैंने कहा : साहब पता नहीं.
सज्जन : अरे बेटा, ऐसे कैसा हो सकता है? कुछ तो होंगे? मम्मी पापा क्या है? उन्होंने बताया तो होगा कि क्या गोत्र है वगैरह?
सागर : अंकल ना ही मैंने पुछा, न ही घर वालो ने बताया. चाहें तो हरिजन समझके मुझे मेरी सीट से हटा दें या ब्राह्मण समझ के अपनी भी सीट देंदें. Wikipedia में पढ़ा था की सारी जातियों को जोड़कर बनायी गयी है और पर्यावरण रक्षा के लिए भी.
सज्जन ठहरे Internet savvy, vodafone ad के बूढ़े अंकल की माफिक, उन्होंने तुरंत google किया
और कहा : ह्म्म्मम्म....लेकिन वैसे बेटा कुछ तो होगा, तुम्हारा मतलब .....
सागर(झुंझलाते हुए) : माफ़ कर दो अंकल, मेरा नाम इखिलेश कुमार है, sc हूँ, मस्ती ले रहा था आपसे..... इतना कहा ही था की अंकल ने लम्बी कूद मारी अगली सीट पे और बैठ गए बड़बड़ाटे हुए. मुह पे ताले लग गए थे या होठ पे छाले पता नहीं लेकिन मुझे यकीन हो गया की हम शारीरिक तौर पे मंगल जरूर पहुँच जायेंगे लेकिन मानसिक और सामाजिक रूप से अभी भी हम वाकई एक अद्रश्य राकेट पे बैठे हुए हैं.